अलहदा दिखती है जिस राहगुजर से देखा

 

    अलहदा दिखती है जिस राहगुजर से देखा

    मैंने दुनिया को किसी और नज़र से देखा


    उसने मुझसे मेरी गिरहों की चाभियाँ ले लीं

    फिर मुझे खोलकर जो चाहा, जिधर से देखा

 

    मसअला यूँ तो शराफत से निपट सकता था

    मैं जहां पर था, कहाँ तुमने उधर से देखा

 

    मैंने मंज़िल से तो सीखा है ठहरने का सबक

    मैंने बेचैन निगाहों को सफर से देखा

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