कहने को बहुत कुछ है सुनाने को बहुत कुछ
पाने को कुछ नहीं है गँवाने को बहुत कुछ
ख़ुद के लिए दो वक्त की फुरसत तो नहीं है
औरों पे है इलज़ाम लगाने को बहुत कुछ
जो कह दिया उन्होंने वही आख़िरी सच था
अब और क्या बचा है बताने को बहुत कुछ
तक़रीर तो ऐसी कि कलेजा निकाल दे
पर ज़हनियत है नोचने-खाने को बहुत कुछ
वैसे तो क़यामत का सफ़र दूर नहीं पर
अब भी बचा है बचने-बचाने को बहुत कुछ
1 Comments
बहुत खूबसूरत लिखते हैं आप..लिखते रहिये..
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