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एक सुन्दर अफ़साना माँ
सोचता हूँ कि मुसलसल लिख दूँ
कुछ टूटता रहता है हमेशा मेरे अंदर
जो मेरे दिल में था अबतक अधूरी दास्ताँ बनकर
सूनी रात के हासिल
खिड़कियाँ