कालापन तहखानों में और पूरा सच बाज़ार के पीछे

    

    बच्चे जैसा चीख रहा था इक बूढ़ा दीवार के पीछे

    जैसे कश्ती डूब रही हो लहरों की मंझधार के पीछे

 

    उजली-उजली चमकीली चीजें थीं सजी दुकानों पर

    कालापन तहखानों में और पूरा सच बाज़ार के पीछे

 

    नहा के खाके धूप में बैठ के पूरा दिन बतियायेगा

    पूरा हफ़्ता बैल बना था हरखू इक इतवार के पीछे

 

    किसको फुरसत अब्बू का टूटा चश्मा बनवाये कौन

    अब्बूजिनकी आँखें धँस गयीं एक इसी परिवार के पीछे

 

    डिग्री बाँध के सीने पर मोहना पंखे से झूल गया

    लड़की का चक्कर था कोई खबर छपी अखबार के पीछे

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