प्रेम

 

मोबाईल के मैसेज की बीप बहुत ही धीमी थी। रात के सन्नाटे और अँधेरे से कसे हुए कमरे में मद्धिम सी आवाज़ और रोशनी ही उसे जगाने के लिए काफी थी। यह दो किश्तों की गहरी नीद का छोटा सा अंतराल था। बहुत मासूम और कोमल। यह करवट बदलने और उँगलियों के चटखने का समय होता है।

बाहर ओस की बूंदों की टिप-टिप सुनाई दे रही थी। बंद पलकों के अन्दर दो पुतलियाँ कसमसाईं। उन्होंने बहुत आहिस्ता से बाहर झाँका जैसे हम किसी सुनसान और निर्जन हवेली में घुसने से पहले दरवाजे की फांकों से अंदर झाँकते हैं। उसने आदतन मोबाईल के टचपैड पर ऊँगली रखी और टोकरी भर उजाला कमरे में तैर गया।

रात के डेढ़ बज रहे थे और मोबाइल के मैसेज बॉक्स में लिखा था “मैं आपसे प्रेम करने लगी हूँ।” उसने छः छोटे शब्दों से बने वाक्य को न्यूनतम छः बार देखा। भाषा, लिपि और व्याकरण की सारी कसौटियों पर कसने के बाद वह आश्वस्त हुआ कि सन्देश में ठीक वही लिखा हुआ है, जो उसने समझा।

उसने खिड़की के हुक को दबा कर काँच को एक तरफ सरका दिया। ठंड से ठिठुरी हवा की कई तहें लड़खड़ाकर कमरे के भीतर गिरीं और बिखर गयीं। लोहे की भीगी ग्रिल पर माथा टेके देर तक वह रातरानी में लिपटी हवाओं को सूँघता रहा। सड़क के दूसरे छोर पर लैम्पपोस्ट पीछे हाथ बांधें और टोपी पहने किसी बूढ़े की तरह हवा की हरकतों पर निगरानी रखे हुए था। कुहरे और हवा की इस बेलौस आत्मीयता से खीझकर वह कभी अपनी गर्दन हिलाता तो कभी तिलमिलाकर बुझ जाता। बूढ़े लैम्पपोस्ट की तल्ख़ निगाहों से बेखबर हवा खिलखिलाती हुई कभी कुहरे को अपनी तरफ खींचती, कभी कुहरा हवा को अपनी तरफ।

उसने खिड़की को यूँ ही खुला छोड़ दिया और रात के कारोबार में कोई दखलंदाजी किये बगैर वापस अपनी जगह आ गया। बिस्तर पर उस जगह अभी भी थोड़ी गर्मी बची हुई थी। उसने मेज पर रखे गिलास का ढक्कन हटाकर दो घूँट पानी पिया। पानी को निगलने की अवाज़ और गले के रास्ते पेट तक जाने की तासीर उसने बहुत दिनों बाद देर तक महसूस की।

जवाब में उसने लिखा “प्रेम से सुंदर कुछ भी नहीं।” छः शब्दों से बने वाक्य को उसने कई बार पढ़ते हुए ख़ुद को आश्वस्त किया कि ठीक-ठीक वही लिखा गया है, जो उसने लिखना चाहा था।

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