मैंने सुना , अलगनी पर बैठी टिटिहरी से तुम्हारी आवाज़ नंगी चारपाई से उठकर , पीछे मुड़कर मैंने देखा मेरी पीठ पर उग आये तुम्हारी हथेलियों के रक्तीले चिन्ह मैंने बनाई दोपहर की धूप के छिटपुट बादलों से तुम्हारी आकृतियाँ जुते हुये ऊबड़-खाबड़ सफेद खेतों में मैंने जाना महुवे के पत्तों पर तुम्हारा ही नाम सहला रही है गर्मी की लू और मैंने महसूस की होंठ और जीभ से अन्दर की तरफ यात्रा करती एक चटकती , रेतीली प्यास फिर मैंने तुम्हें पुकारा और यह हुआ अभी , हाँ , बिलकुल अभी टिटिहरी उड़ गयी थी उन आकृतियों को समेटते हुए सा…
पेड़ों ने नए इल्म गढ़े पंछियों के बीच बस्ती बहेलियों की बसी घोसलों के बीच उनवान था सहराओं में भी फूल खिलेंगे शोले बरस रहे हैं यहां बारिशों के बीच मुंसिफ ने हँसके रोटी के मसले पे कहा , चल चल चाँद दिखाते हैं तुझे बादलों के बीच उसने उठाये हाथ सवाली मिजाज़ से शरमा के खुद ही खींच लिए तालियों के बीच रमुआ ने हाथ जोड़ लिए क़ातिलों के बीच मैं क्या करूँगा जाके वकीलों , जजों के बीच मैं साँस ले रहा हूँ ग़ज़ब दहशतों के बीच सिसकी फँसी पड़ी हो जैसे कहकहों के बीच खुद को समेट लें तो चलें और कहीं पर …
Writer, Assistant Professor, Hindi Department, Central University of Jharkhand, Ranchi
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