ये दुनिया इक ख़्वाब सही...


ये दुनिया इक ख़्वाब सही मंज़र भी तो है

और यही दुनिया महबूब का घर भी तो है

 

सात समंदर जितनी गहरी आँखें उसकी

सात पहाड़ों जैसा सख़्त जिगर भी तो है

 

मरना उतना बुरा नहींमर जाना ही है

खुद को मरता देख न लें ये डर भी तो है

 

मैं मंज़िल के ख़्वाब सुनहरे देख रहा था

याद आया कि इक वीरान सफ़र भी तो है

 

पीर-फ़कीरों की सब बातें ठीक हैं लेकिन

रूह के बाहर जिस्म भी है इक सर भी तो है

 

नदीसमंदरपहाड़पर्वतजंगलसहरा

कुछ हिस्सा बाहर है कुछ अंदर भी तो है

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