न तुझे पता, न मुझे पता

 

नदी किनारे घाट की सबसे निचली सीढियों पर बैठे हुए दोनों बिखरे हुए कंकड़ बीन-बीन कर पानी में फेंकते रहेलेकिन घंटो तक बोला कोई नहीं. पानी में कंकड़ गिरने के बाद घुप्पकी आवाज़ होती और ख़ामोशी की लय थोड़ी देर के लिए टूट जाती. सूरज डूबने को हो आया. बढ़ी हुई नदी की लहरों सा एक शोर दोनों का अन्दर भी था. कहने को बहुत कुछ था, लेकिन शब्द नहीं थे. युनिवर्सिटी कैम्पस के मेन गेट से दोनों साथ चले थे. सीढियों पर कोई ठीक-ठाक सी जगह देख कर बैठने तक चुपचापख़ामोशी की एक लकीर दोनों के क़दमों के साथ खिंची चली आई थी.

कोई बच्चा सीढ़ियों से दौड़ते हुए आया और नदी के पानी में छपाक से हाथ मार कर भाग गया. पीछे से उसकी मम्मी उसे सम्हालने के इरादे से दौड़ी आई.

शरारत नहीं बेटू ! मम्मा ने मना किया था न ! कि पानी में अकेले नहीं जाना. बेटू का हाथ क्रोकोडाइल पकड़ लेगा तो ?

क्रोकोडाइल नहीं मम्मा अनाकोंडा”, और बच्चे ने मम्मा को डराने के लिए अनाकोंडा जैसी शक्ल बनानी चाही. ये अलग बात है कि उसकी कोशिश तेंदुए के आस-पास तक ही पहुँच सकी.

हाँ-हाँ, ठीक है, चलो.

मम्माक्या पानी में डायनासोर भी हो सकते हैं ?

नहीं बेटू, डायनासोर तो कब के ख़त्म हो गए !मम्मी ने उसकी पैंट ऊपर सरकाते हुए कहा.

अगर डायनासोर ख़त्म हो गए तो फिर टीवी में कैसे दिखाते हैं ?

ख़त्म हो गए बाबाटीवी में नकली वाला दिखाते हैं, चाहे तो अंकल से पूछ लो !

बच्चे और उसकी मम्मी के चले जाने के बाद भी बहुत देर तक दोनों खामोश ही बैठे रहे. भीड़ कम हो चली थी. पानी की ही तरह बहते हुए लोग, घरों की तरफ निकल चुके थे. एक बांसुरी वाला बीच-बीच में उस ख़ामोशी को अर्थ देने की नाकाम कोशिश में लगा हुआ था. घाट की बत्तियां जल चुकी थीं. नदी किनारे बैठे उन दोनों की परछाइयां पानी की लहरों पर साथ-साथ तैरते हुए एक दूसरे को रह-रह के छू जाती थीं.

तो ?” लड़की ने लड़के की तरफ एक सवालिया निगाह दौड़ाई.

तो क्या ?” लड़के ने बिना चौंके नदी में ही नज़रे गड़ाए दुहरा दिया.

तुम कुछ कहने वाले थे !

कह तो दिया थाफोन पर,... अब और क्या कहूँ ?

उसी का मतलब तो पूछ रही हूँ !

क्या और कौन सा मतलब बताऊँ तुम्हें ?, जो कहना था कह तो दिया था !” लड़के ने एक और कंकड़ फेका.

तुम्हे भी पता है कि मैं कौन सा मतलब जानना चाह रही हूँ”, लड़की ने थोड़ी नाराज़गी ज़ाहिर की. नहीं बोलना है कुछ, तो चलो निकलते हैं. वैसे भी मुझे हॉस्टल के लिए काफी देर हो रही है.

लड़के ने कोई बेचैनी नहीं दिखलाई. एक आखिरी कंकड़ उठाकर थोड़ी ज्यादा ताकत से पानी में उछाल दिया, फिर घुप्पकी आवाज़ के साथ उठते हुये कहा “मेरा ख्याल है कि आदमी को ज़रूरत से ज्यादा मतलबी नहीं होना चाहिए.

कैम्पस के उसी गेट पर पहुँच कर दोनों ने एक दूसरे से विदा ली.

**********

फिल्म देखने चलोगे ?”, फोन उठाते ही लड़की ने पूछा.

लड़का व्यस्त थाया फिर व्यस्त लग रहा था.

कौन सी ?, कहाँ ?

बहुत व्यस्त हो क्या तुम ?

कुछ सोचती सी आवाज़ आई. नहीं...तो.

इतने दिन हो गयेफोन नहीं किया तो मुझे लगा बहुत बिजी होगे.

अच्छा ?

लड़के की आवाज़ में एक तंज वाली हंसी थी, जिसका सीधा सा मतलब था कि यही सवाल तो मैं तुमसे भी पूछ सकता हूँ, लेकिन चूँकि मैं शरीफ आदमी हूँ इसलिए नहीं पूछूँगा. फैली हुई किताबें बिस्तर के कोने में सरका कर उसने जगह बनाई और पाँव फैला लिए. लड़की की आवाज़ में उसे कुछ शोखी नज़र आई थीजिसका वह भरपूर मज़ा लेना चाहता था.

चलो न प्लीज़ !, कल मुझे घर जाना है. तीन-चार दिन बाद लौटूंगी. कुछ अच्छा सा खाने का भी मन हो रहा है. हॉस्टल का खाना खा-खा के बोर हो गयी.लड़की की बेचैनी भरा प्यारा सा चेहरा उसके सामने उभर आया.

घाट पे नहीं चलोगी ?, मुझे तुमसे कुछ बातें करनी है.कहने के साथ लड़के का होंठ अपनी प्राकृतिक लम्बाई से डेढ़ इंच ज्यादा फ़ैल चुका था.

मुझे कंकड़ फेंक-फेंक के नदी में बाँध नहीं बनाना है. एक अच्छा भला शहर मुफ्त में डूब जायेगा.

शहर की बड़ी चिंता है तुम्हे ! थोड़ी हमारी भी कर लिया करो !

हूँ.., वाकई चिंता का विषय तो तुम हो. तुम मेरे लिए ही नहींपूरी धरती के लिए चिंता का विषय हो. यहाँ तक कि मुझे तो इस बात पे भी शक है कि तुम इसी धरती के रहने वाले हो. हो न हो कहीं और से आये हो. और तुम जैसे लोग आते कहाँ हैं, प्रकट होते हैं... अवतरित होते हैं.

गज्जब !, तुम अपना पीजी ख़त्म करने के बाद रिसर्च भी मुझपर ही कर लेना.., मेरे से मस्त टॉपिक कहाँ मिलेगा तुमको..लड़के का होंठ डेढ़ से दो इंच बढ़ गया..

चार बजेमेन गेट...कह के लड़की ने फोन काट दिया. कह नहीं सकते लेकिन फिर भी इसमें यह शामिल था कि आना चाहो तो ठीक नहीं तो कोई बात नहीं.

**********

सिंगल स्क्रीन सिनेमा. खाली पड़ी बालकोनी की सबसे पिछली सीट. लड़की बहुत खूबसूरत लग रही थी. लड़के ने भले ही यह पूछ लिया था कि कौन सी फिल्म देखनी है, लेकिन उसे इस बात से कोई खास फर्क नहीं पड़ता. फिलहाल उसका पूरा ध्यान लड़की पर था. लड़की हॉलीवुड फिल्मो की दीवानी थी, और उसे बता रही थी कि इस हीरो की कुल रिलीज इग्यारह फिल्मों में सात उसने देखी हैं, दो की कहानी सुन रखी है, और दो के बारे में नाम के अलावे उसे आज तक कुछ पता नहीं चल पाया है. लड़के ने अपना बैग गोद में से उठाकर बगल की सीट पर रख दिया और आगे की एक सीट पर पैर फैला कर आराम की मुद्रा में आ गया. बैग वह क्यों ले आया था, उसे खुद नहीं मालूम. दुनिया के फ़ानीपने पर उसे पूरा यकीन था, फिर भी अक्सर अप्रत्याशित सा कुछ भर लेने की चाहत में पीठ पर बैग लादे घूमता रहता.

कोई रोमांटिक दृश्य चल रह था. सिनेमाघर के खाली भूगोल के निचले इलाके से कुछ अतिउत्साह भरी देसी आवाजें माहौल को रंगीन बना रही थीं. बाहर थोड़ी देर पहले बारिश के एक झोंके ने शहर को थोड़ी देर के लिए रोक दिया था. रुके हुए कुछ लोग समय काटने के लिए फिल्म देख लेना चाहते थे. उन्होंने शायद फिल्म की अपनी समझ और मांग के हिसाब से टिकट का कुछ ज्यादा ही दाम चुकाया था, इसलिए गुटखा भरे मुंह से फिल्म की कई प्रकार की समीक्षाएं हवा में तैर रही थीं.

हिरोइन की इंट्री के साथ एकाएक कोरस में आवाज़ गूँजी..

अरे आजा मेरी जान ! खा ले मीठा पान..,”

ले ले गड्डी...,

खोल दे चड्डी...,

जिस भी महान कवि की पंक्तियाँ थीं, लेकिन इस वक्त आखिरी लाइन कोरस में नहीं गाई गयी थी. किसी ने, अपनी अभी तक की अपनी ज़िन्दगी का सबसे साहस भरा काम किया था. अपनी कोशिश में वह कितना सफल हुआ, उसी को पता होगा, क्योंकि लाईट जलने के साथ नीचे से कुछ मारपीट की आवाजें भी आने लगी थीं. 

लड़की लगातार स्क्रीन पर निगाहें जमाये बैठी रही. इंटरवल में लड़के को महसूस हुआ कि उसकी आधी ज़िन्दगी बीत चुकी है. बस आधी बाकी है.

मैं कुछ लेके आता हूँ.उसने उठते हुए कहा.

लड़की ने न सहमति जताई, न असहमति. न ही असुविधा के लिए कोई खेद प्रकट किया. बस उसे जाने दिया..

लाइट बुझने के बाद लड़के की बची हुई ज़िन्दगी बहुत तेज़ी से बीतने लगी. इतनी तेज़ी से कि उसने बिना कुछ सोचेसमझे लड़की का हाथ अपने हाथ में ले लिया.

लड़की ने कुछ नहीं कहा.

बाद में लड़के को याद आया कि लड़की का हाथ फंसे होने से उसे पॉपकार्न खाने में दिक्कत हो रही है. उसने बिना हाथ छोड़े लड़की के चेहरे पर पसर आई जुल्फों को हटाया और दो दाने उठाकर उसके मुंह में डाल दिए. जितनी शिद्दत के साथ पॉपकार्न मुंह में डाले गए थे लड़की ने उतनी ही बेरुखी के साथ उसको चबा लिया. उसने न अपना हाथ छुडाने की कोशिश की, न ही पकड़ने की.

लडको को महसूस हुआ कि वह उम्र में ठीक ठाक होने के बावजूद नीचे वाली भीड़ की लंठई का मुकाबला नहीं कर सकता. अभी और अभ्यास की ज़रूरत है. लड़की इस हीरो की आठवीं फिल्म की कहानी सुन चुकी थी, इसलिए उसे भी बहुत मज़ा नहीं आ रहा था. फिल्म ख़त्म होने के काफ़ी पहले ही दोनों सिनेमाहाल की सीढियां उतर चुके थे. पॉपकार्न ने लड़की का पेट भर दिया था. उसने बाहर आकर भी कुछ खाया नहीं, जैसा कि पहले उसका इरादा था. दोनों ने कैम्पस के गेट पर विदा ली और समकोण बनाते हुए दो अलग दिशाओं की तरफ चल पड़े.

**********

लड़के का लॉज...

अबे कॉमरेड ! तुम सोचते ज्यादा हो. इसलिए जीवन के हर क्षेत्र में मार खा जाते हो. कोई भी खेल जीतने का पहला नियम होता है अटैक ! एकदम टू दी प्वाइंट. समझ रहे हो ? ज्यादा सोचोगे, गेंद सिर से ऊपर निकल जाएगी. और गेंद की जगह तलवार हुई तो सीधा पेट में”, अधपकी लिट्टी पलटते, राख कुरेदते और धुंए से दो-दो हाथ करते सीनियर ने अपने जीवन का सारा अनुभव उड़ेल दिया. लेकिन हाँ, अटैक के लिए भी सही मौके का इंतज़ार करना ज़रूरी है.हालाँकि सीनियर किसी भी कोण से कम्युनिस्ट नहीं लगता, और लड़का तो बिलकुल भी नहीं, फिर भी जब मिलता, न जाने किस भ्रम में लड़के को कॉमरेड-कॉमरेड बुलाता रहता.

भैयाजी सही फरमा रहे हैं, महबूबा भले न हो कोई, लेकिन जीवन का गहन अनुभव सूक्तिवाक्य में ही परकट होकर आता है.शास्त्री उपनाम के किसी जूनियर ने चुटकी ली.

तुम चूतिया हो शास्त्री ! जीवन को संख्या और आंकड़ों में देखते हो. मैथ तुम्हारी प्रतिभा नहीं, मज़बूरी है. बाप ने पुड़िया भर खिला दी, और तुम हर जगह हगते रहते हो. शुक्ला से नीबू मांग के लाओ और विषुवत रेखा के हिसाब से काटो. असली वाला चोखा खिलाते हैं तुमको. भूगोल पढ़े हो या विषुवत रेखा समझाएं तुम्हें ? सीनियर कुछ-कुछ झल्ला गया था..

कॉमरेड ने मौके का फायदा उठाया, “आपसे कोई लड़की आई लव यू बोले तो आप क्या कहेंगे ?”

लपक लेंगे गुरु. और क्या करेंगे ? ये भी कोई पूछने वाली बात है ?” सीनियर की आँखें कौतूहल से चौड़ी हो गयी.

वही तो, हमने साहस करके बोल दिया. न बुरा मानती है, न भला. मतलब पूछती है. मतलब क्या घंटा ?”

अबे, मतलब का मतलब कमिटमेंट ! और कमिटमेंट का मतलब होता है कॉमरेड, स्वाहा !सीनियर ने ब्रह्मवाक्य की मुद्रा में कहा, और शास्त्री की तरफ पलट गया. शास्त्री खटाई है क्या तुम्हारे पास ? अचार तो होगा ही !

यहाँ जिंदगी खटाई में पड़ी है, और आप को चोखे की पड़ी है. निराश करते हैं आप भी कभी-कभी !लड़के ने कहा.

वही तो ! तुम समझ नहीं रहे हो. सोचो ज़िन्दगी का दूसरा नाम चोखा होता तो क्या होता ?, धुँए के भभके की चपेट में आने के बाद सीनियर ने दमें के पुराने मरीज़ की तरह खाँसते हुए कहा, “और शास्त्री भोसड़ी के ! तुम टमाटर कच्चे मत काटो, उसको भूंजना है अभी. ज़िन्दगी हो या चोखा, हम रिस्क नहीं लेते. छाँट के बनाते हैं और चाट के खाते हैं.

भाई जी, आपकी बातों में कन्फ्यूजन दिखता है हमको, मतलब ये क्या बात हुई कि....लड़के ने निराशा जाहिर की.

वही तो !, जीवन को सुलझाने के लिए उहापोह का होना बहुत ज़रूरी है. यह पहला कदम है. अब सोचो ज़रा ! तुम सारे लोग चोखा खाने के लिए मुंह बाए हुए हो. लेकिन कोई ससुर ये नहीं पूछ रहा कि अच्छा चोखा बनाने के लिए क्या ज़रूरी है, आंय !, बोलो है कि नहीं ?”

जूनियर शास्त्री ने ऊँगली उठाई, और बिना इजाजत के ही बोल पड़ा भईया जी हम बताएं ! आलू, बैगन, प्याज, टमाटर, निमक, धनिया, मिर्चा और... नीबू.

फिर पोंक दिए शास्त्री तुम,... जल्दबाजी नहीं, कितनी बार बताया है !.. सुनना सीखो पहले. तानसेन से पहले कानसेन बनो. और मिर्चा कौन काटेगा ? तुम्हारा बाप ?”

बाप पे न जाया कीजिये भैयाजी. बता रहे हैं ! और मिर्चा नहीं है हमारे पास !शास्त्री ने थोड़ी तल्खी जताई.

क्रोध नहीं, शास्त्री. हानिकारक है, स्वास्थ्य के लिए भी, और जीवन के लिए भी. हमने मान लिया कि मिर्चा तुम्हारे पास नहीं है, हमारे पास भी नहीं है, लेकिन धरती से नहीं न उठ गया है ? मांग के लाओ किसी से !

गुड्डुआ के पास है, हम देखे हैं, लेकिन उससे तो झगड़ा हुआ है ! वो क्यों देगा जब साथ में खाने को नहीं राजी हुआ ?”

देखो तीखा तो गुड्डुआ भी पर्याप्त मात्र में है, लेकिन क्या है कि उसको चोखे में नहीं डाल सकते. उसकी तिताई का इस्तेमाल फिर कभी कर लिया जायेगा, लेकिन इस वक्त हमें गुड्डुआ की नहीं, मिर्चा की ज़रूरत है. इतना इगो ठीक नहीं. मांग के देखो, हमारा अनुभव कहता है, दे देगा. जाओ !

हाँ तो आप बता रहे थे कि चोखा बनाने के लिए....”, लड़के ने बची बात निपटाने की गरज से कहा.

सही आंच और पर्याप्त मात्र में धीरज यानि पेशेंस.सीनियर ने कॉमरेड की बात पूरी हुए बिना, उसकी आँखों में आँखे डाल कर अपनी फाइनल बात कह दी थी.

**********

इंतजार चार दिन का ही था, लेकिन ज़रूरत से ज्यादा लम्बा था. इस बीच उसने अपने ही आई लव यू का मतलब निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन बार बार उसके सामने थाली में परोसा चोखा याद आ जाता. चौथे दिन तक उसने खुद को आराम देने की गरज से बहुत गहराई वाले सवालों पर सोचना बंद कर दिया.

कैम्पस के गेट पर घर से लाई गुझिया का डिब्बा हाथ में थामते हुए उसने लड़की का हाथ बहुत दिनों बाद छुआ. हाथ छूते ही लड़की को धक् से न जाने क्या महसूस हुआ कि उसने नज़रें झुका ली. लड़के को भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ और उसने घबराहट में उसका और उसके घर का हाल-चाल पूछते हुए पूरे चौराहे का मुआयना किया. लड़की, जिसने गुलाबी कलर की कुर्ती और काली छींट वाली स्कर्ट पहन रखी थी, ने गालों पर लटक आई लटों को कान के पीछे टिकाते हुए उसकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा. चौराहे से घूमते हुए लड़के की नज़रें जैसे ही लड़की से टकराई, लड़की ने न जाने क्यों मुस्कुरा दिया. ऐसा लगा जैसे धूल उड़ाती सूखी ज़मीन पर बारिश की फुहार पड़ गयी हो. जैसे ज़मीन में दबा हुआ कटहल पकने के बाद फूटकर महक गया हो. लड़का समझ नहीं पा रहा था कि यह उसकी नज़रों का वहम है, या लड़की ज़रूरत से ज्यादा खूबसूरत हो गयी है. यह पहली बार हो रहा था कि उसे मुकम्मल लड़की को कई किश्तों में देखने की ज़रूरत महसूस हो रही थी.

खाना खाया ?” लड़की ने पूछा.

नहीं, बनाने ही जा रहा था कि तुम्हारा फोन आ गया.इधर-उधर देखते हुए लड़के ने कहा.

चलो इधर ही कुछ खिला देती हूँ..

ठेले के बगल में बेंच पर बैठे लड़के ने आवाज़ लगाई- भैया थोड़ा और चोखा देना यार !, आज तो तुमने कमाल कर दिया है कसम से !

**********

हेल्लो ! गुझिया खाई तुमने ? कैसी लगी ?” लड़की फोन पर चहकी.

बिलकुल तुम्हारी तरह !

सच्ची बताओ ! मैंने बहुत मेहनत से बनाई थी. तुम्हारे लिए.

सच में बहुत अच्छी थी. लेकिन तुम्हारी तरह नहीं. तुम उससे बहुत-बहुत-बहुत ज्यादा अच्छी हो.

लड़के की बातों में पता नहीं क्या था. लेकिन कुछ ऐसा था जैसे तालाब के खामोश और ठहरे हुए पानी में किसी ने पत्थर उछाल दिया हो. बिस्तर पर बैठी लड़की दोहरी होकर लेट गयी. उसने मोबाइल को कान से और ज्यादा सटाते हुए तकिये को बाहों में भर लिया.

शाम को मिलोगी ?”

लड़की ने कुछ नहीं कहा. बस तकिये को थोडा और कस लिया.

शाम छः बजे, आंबेडकर पार्क...और फोन कट गया.

**********

पार्क की सबसे ऊंची जगह पर बैठे लड़के और लड़की के बीच बहुत थोडा सा फासला था. पढ़ाई-लिखाई और आने वाली परीक्षाओं के साथ तमाम तरह की और दुश्वारियों पर बातचीत करते दोनों की निगाहें पार्क के किनारे बैठे जोड़े पर जा टिकती, जो हँसते-खिलखिलाते हुए रह-रह कर बड़ी ही बेतकल्लुफी से एक दूसरे को चूम लेता था. जोड़े एक नियमित गति से एक दूसरे के कन्धों पर सिर रखकर नोची गयी घास को कभी नाखूनों से तो कभी दांतों से टुकड़े-टुकड़े करते, और उतनी ही नियमित गति से एक दूसरे पर उछाल देते. कुछ और बेचैन जोड़े पार्क की दीवारों से लगी वृत्ताकार सड़क पर एक दूसरे का हाथ थामें चहलकदमियाँ कर रहे थे. शाम ढलने के साथ वे टहलते-टहलते थोड़ी देर के लिए घनी झाड़ियों या पेड़ों की ओट में छिप जाते, फिर निकल कर टहलने लगते.

चलते हैं, मुझे हॉस्टल के लिए देर हो जाएगी.लड़की ने अपने हाथों से नोची हुई एक दूब की ऐसी-तैसी करते हुए कहा.

कितना अच्छा होता न कि तुम्हारा हॉस्टल मेरे लॉज की तरह कभी बंद नहीं होता !

लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया. वह बड़ी तन्मयता के साथ नन्ही दूब की ऐसी-तैसी करती रही.

लड़के ने लड़की के बाएं हाथ को आहिस्ता से अपने दाहिने हाथों में ले लिया. वह उसके हाथों को अपने हाथों से कसकर दबा देना चाहता था, लेकिन ठीक उसी वक्त खम्भे के ऊपर लगी बत्ती टिमटिमाई और अपनी पूरी ताकत से जल गयी. लड़की खामोश थी. उसने उतने ही आहिस्ता से अपने हाथों को वापस खींचते हुए मन ही मन कहा कितना अच्छा होता न ! ये बत्तियां कभी नहीं जलतीं !अब उसे यह फ़िक्र नहीं सता रही थी कि शहर में अँधेरा हो जाना, शहर के डूब जाने की ही तरह ठीक नहीं.

थोड़ी देर बाद दोनों पार्क की वृत्ताकार सड़क पर घूम रहे थे. साथ चलते रह-रह कर एक दूसरे से हाथ टकरा जाते, तो दोनों और सम्हल कर चलने लगते. लड़का रास्ते पर पड़े एक पत्थर के टुकड़े को पैर से फ़ुटबाल की तरह आगे सरका देता, फिर उसके पास पहुँचने के बाद फिर से वही बेवकूफी भरी हरकत करता. लड़की रास्ते के बगल में लगे सारे पेड़ों से एक-एक पत्ती तोड़ती, और उनको गुलदस्ते की शक्ल में सजाती हुई लड़के के साथ चलती रहती. बहुत देर तक बिना कुछ कहे-सुने उनमें से किसी को नहीं पता कि वे कितना घूम चुके और कितना बाकी है.

इस साल बारिश अच्छी होगी !चौथी या पाँचवीं परिक्रमा पूरी होने के करीब लड़की बुदबुदाई.

होनी तो चाहिए.., बहुत साल से अच्छी बारिश नहीं हुई. अगर अच्छी बारिश हुई तो मैं मछलियाँ पकडूँगा. मुझे मछलियाँ पकड़ना पसंद है. तुम क्या करोगी ?”

मैं ?, .... मैं खूब भीगूंगी. मुझे बारिश में भीगना बहुत पसंद है. तेज बारिश में दोनों बाहें फैलाकर, आँखें बंद करके देर तक गोल-गोल घूमूंगी और फिर छत पर लेट कर घंटों यूँ ही पड़ी रहूंगी.

लड़के ने पत्थर के टुकड़े को फिर से आगे बढाने के लिए पैर उठाया, फिर कुछ सोचकर उसे किनारे की तरफ लुढ़का दिया. पीछे मुड़ा और लड़की के हाथों से पत्तियाँ छीनकर फेंक दी. कुछ पलों तक लड़की की आँखों में देखने के बाद उसने झटके से पास खींचकर पूरी ताकत से अपनी बाहों में भर लिया.

**********

रात के एक बजे, लड़के ने बत्ती बुझाकर नींद का दरवाज़ा खटखटाया ही था कि मोबाइल बज उठा.

सो गए थे क्या ?,

लड़के ने उनींदी आवाज़ में जवाब दिया तक़रीबन,.. बोलो.

लड़की थोड़ी देर खामोश रही. फिर उसके सुबकने की धीमी से आवाज़ सुनाई दी.

व्हाय आर यू क्राइंग ?, क्या हुआ ?” लड़का थोड़ा चिंतित हुआ.

लड़की फिर भी ख़ामोश रही, लड़के ने भी तुरंत कुछ बोलना उचित नहीं समझा.

ठीक है, रोना आ रहा है तो रो लो, खाली होना तो बताना.और जवाब के इंतज़ार में फिर थोड़ी देर खामोश रहा. इस बीच लड़के को महसूस हुआ कि उसने बात सही कही है, लेकिन तरीका गलत है.

लड़की ने बिना कोई जवाब दिए फोन काट दिया. थोड़ी देर बाद लड़के ने कॉल बैक किया.

आई थिंक, अब तुम कुछ बोल सकती हो. बोलो.

तुम्हें ज़रा भी फर्क पड़ता है, या फिर जानबूझ कर अनजान बनते हो ?”

ये तो बहुत गंभीर सवाल है बेबी, कुछ आसान सा पूछो न !

मैं जानना चाहती हूँ कि तुम्हारे लिए ‘आई लव यू’ का क्या मीनिंग है. उस दिन तुमने मुझे प्रपोज किया, आज बाहों में भर लिया और किस भी कर लिया. कल को और न जाने क्या करोगे. तुम्हारे लिए क्या सबकुछ इतनी मामूली सी चीज़ है ? या इसके कुछ और मायने भी हैं ?” गहरे अँधेरे में लड़की के फिर से सुबकने की आवाज़ बहुत साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थी.

लड़का खामोश रहा, लड़की बोलती रही..

मैंने अभी तक तुमको कोई जवाब नहीं दिया है. लेकिन मुझे हैरानी है कि तुम्हें जवाब पाने की कोई बेसब्री भी नहीं है. इतने दिनों में क्या तुमने एक बार भी जानने की कोशिश की, कि मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ या नहीं ?”

मेरा ख्याल है तुम बहुत आसान बात को पेचीदा बना रही हो. देखो ! मैंने तुमको प्रपोज किया. मुझे तुम्हारे साथ अच्छा लगता है. तुम्हारे साथ घूमना, फिल्म देखना, बातें करना, नदी किनारे बैठना. तुम्हें किस करना, और... व्हाटएवर.., लेकिन तुम्हें फ़ोर्स नहीं किया कि तुम बात का जवाब दो. मैं तुमसे जवाब की उम्मीद करता हूँ, लेकिन तुम्हारा जवाब क्या हो, मैं ये नहीं तय करना चाहता.. और न ही उसकी कोई समय-सीमा.लड़का एक सांस में बोल गया, और अपने बोले हुए पर सोचने लगा.

लेकिन उसके पहले किस करने में या और भी कुछ करने में तुम्हें कोई हर्ज नहीं है, यही न !लड़की की आवाज़ में थोड़ी तल्खी थी.

तुम्हें है ? मुझे तो नहीं नज़र आया !लड़के ने मुस्कुराहट से माहौल को थोड़ा हल्का करने की कोशिश की.

मेरी बात का जवाब दो पहले, फिर सवाल पूछो !लड़की की तल्खी अपनी जगह पर कायम थी.

छूटते ही लड़के ने कहा सच बताऊँ तो मुझे कोई हर्ज़ नहीं है. ज़रूरी नहीं कि जब तक कठिन काम समझ नहीं आये, तब तक आसान काम करना ही नहीं चाहिए..

तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है ?” लड़की टस से मस नहीं हुई.

नहीं, बिलकुल नहीं. आई ऐम भेरी-भेरी सीरियस.लड़के ने फिर चुहल की.

लड़की ने कहा प्लीज़ यार ! तुम समझ नहीं रहे हो ! जबसे तुमने मुझे छुआ है, मैं बहुत कन्फ्यूज हो गयी हूँ. क्या चाहते हो माथा पकड़ के बैठी रहूँ, पढ़ाई लिखाई न करूँ ? तुम भी मुझे अच्छे लगते हो, लेकिन मैं चाहती हूँ हमारे आगे बढ़ने के पहले कुछ चीजें साफ़ हो जाएँ. कन्फ्यूजन ख़त्म नहीं होता कभी, लेकिन जितना कम हो, उतना अच्छा है न !

शादी करना चाहती हो क्या मुझसे ?” लड़के ने कन्फ्यूजन ख़त्म करने की कोशिश में सीधा सवाल फेंका.

मैंने यह नहीं कहा. लेकिन कर भी सकती हूँ, पर अभी नहीं. खैर ये कोई सवाल ही नहीं है !लड़की ने सोचते हुए कहा.

तो फिर क्या चाहती हो ? प्यार के लिए कोई एफिडेविट लिखवाना चाहती हो ?” लड़का थोडा तो झल्लाया था.

लड़की लज्जित हुई नई यार ! वैसे तुम क्या चाहते हो ?”

अब मेरी बारी है, जवाब तुम दो.लड़के ने बदला लिया.

एक्चुअली, मैं चाहती हूँ कि मुझे तुम पर भरोसा हो.लड़की की आवाज़ में याचना थी.

तुम चाहती हो कि तुम्हें मुझ पर भरोसा हो. राइट ! तो विल यू प्लीज़ टेल मी कि इसमें मुझे क्या करना होगा ? ये तुम्हारी समस्या है, तुम्हीं देख लो कोई भरोसे का डिप्लोमा होता हो तो ज्वाइन कर लो.

लड़के का जवाब सुन कर लड़की हँस दी, लेकिन हंसी में व्यंग्य या वितृष्णा जैसी कोई चीज़ ज़रूर थी.

तुम लड़कों में भरोसा न चाहने या न करवाने की यह बेफिक्री कहाँ से आती है ? कभी सोचा है इस पर ?” लड़की का यह सवाल अब तक का सबसे कठिन और क्रूर सवाल था.

लड़के ने चुप रहने और सोचने के लिए पर्याप्त समय लिया, फिर बोला हाँ !, मैं कन्फेस करता हूँ कि यह बेफिक्री, यह हिम्मत और हैसियत मुझे सोसाइटी देती है. इतना ही नहीं, यही सोसाइटी मुझे और भी बहुत सारे नाजायज़ फायदे उठाने की छूट देती है, जो तुम्हारे पास नहीं है. मैं हज़ार बार यह स्वीकार करने को तैयार हूँ.

तुम्हें लगता है तुम्हारे स्वीकार करने से कोई फर्क पड़ेगा ?”

सवाल कठिन था लेकिन लड़के ने कोशिश नहीं छोड़ी नहीं, मुझे पता है कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन इतनी कोशिश ज़रूर कर सकता हूँ कि यह नाजायज़ फायदा उठाने की नौबत मेरे हिस्से न आये. और उठायें तो दोनों साथ उठायें. इस जगह पर तुम्हारे साथ हूँ.

लड़के को किसी पर हो न हो, अपने शब्दों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा था. उसने कह तो दिया, लेकिन अचानक उसे महसूस हुआ कि यह इतना आसान नहीं है. अब लड़की का सवाल उसके जेहन में धीरे-धीरे खुलने लगा. फोन रखने के बहुत देर बाद तक उसने नीद का दरवाज़ा फिर खटखटाया, लेकिन नीद नहीं आई. उसे लगने लगा कि उसके छोटे से बंद कमरे में मौजूद हवा सांस लेने के लिए बहुत कम है. दरवाज़ा खोलकर भी जब वह कमी पूरी नहीं हुई तो वह बाहर निकल आया. जिस सवाल को अबतक वह बहुत मामूली समझता रहा, जिससे अक्सर वह पीछा छुड़ाना चाहता था, वह अब उसकी पूरी देह से चिपट गया था. थककर चूर होने तक वह लॉज की दूब पर पर टहलता रहा.

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रात बहुत देर से सोने के बावजूद सुबह नींद जल्दी खुल गयी. बाहर सीनियर का तांडव जारी था. उसका हर काम तांडव था. और ठीक तरीके से कहें तो वह खुद ही एक चलता-फिरता तांडव था. अभी दातून कर रहा था, गों-गों की आवाज़ से लग रहा था कि अंतड़ियाँ निकाल के मानेगा आज. उसके पादने, हगने, मूतने, दातून करने, नहाने-धोने, खाने, बोलने से लेकर प्रत्यक्ष और परोक्ष सभी क्रियाओं में एक भीषण और ठोस मर्दानापन झलकता था. लड़की का सवाल यही तो था कि यह बेफिक्री कहाँ से आती है ?’ लड़के ने बिस्तर पर लेटे-लेटे सीनियर की जगह लड़की को रख कर देखने की कोशिश की. थोड़ी ही देर में बहुत सारी चीजें गड्ड-मड्ड होने लगीं. उसने देखा कि लड़की अपने मुंह में उँगलियाँ डाल कर गों-गों करते हुए कुछ उगलने की कोशिश कर रही है. सांस लेने के लिए कमरे की हवा फिर कम पड़ने लगी तो लड़के ने दरवाज़ा खोल दिया.

आँख मलते हुए वह जैसे ही बाहर निकला, बाहर सीनियर की खिदमत में खड़े दो-तीन जूनियरों ने ठहाका लगाया. लड़का सीनियर से उम्र में छोटा भले ही था, लेकिन अपने पूरे कलेवर में गंभीर था. किसी को मजाक उड़ाने का मौका नहीं देता था. ज्यादा ज़रूरी हुआ तो अपना मज़ाक खुद ही उड़ा लेता. सीखने-सिखाने को तैयार, ‘इगोलेस पर्सनालिटी’ की वजह से लॉज में नया होने के बावजूद, सबको महसूस होता कि उससे कोई पुराना नाता है. और सबसे बड़ी बात थी कि उसको थोड़ी बहुत अंग्रेजी भी आती थी. उसका अंग्रेजी अखबार पढ़ना वहां कोई मामूली सी घटना नहीं थी. उसकी अंग्रेजी फिल्मों की समझ और कच्ची-पक्की फिलॉसफी की बातें यदा-कदा सब मुँह बाए सुनते. इस वजह से उसकी हैसियत लफंडरों में वैसी ही थी जैसे रेत में लहराता हुआ कोई सागर.

लड़के को देखते ही सीनियर ने पिच्च से थूकते हुए शास्त्री को डांटा भोसड़ी के चूतिया हो, चूतिया ही मरोगे शास्त्री. सुबह-सुबह दातून के समय पवित्र होते मुंह की लंका मत लगाया करो. दूध उबल गया है स्टोव बंद करो, टंकी उबल चुकी है, मोटर बंद करो. और सबसे ज़रूरी बात अपना मुंह बंद करो.फिर लड़के की तरफ मुखातिब होते हुए बोला आओ कॉमरेड ! तुम्हारे बारे में ही बात हो रही थी.

अच्छा, मैं कब से इतना बड़ा आदमी हो गया”, लड़का आँख मलमलाते हुए बोला.

हरे कुछ नहीं,.. शास्त्री कह रहा था कि तुम ढाई बजे रात को टहल रहे थे. काफी चिंतित लग रहे थे.

हाँ ऐसे ही, नींद नहीं आ रही थी. और चिंता-विंता तो लगी ही रहती है दादा. जीवन है !

शास्त्री बीच में टपका भैयाजी चिंता चिता के समान है. चिंता से चूतर जरे, औ दुःख से जरे कपार...

सीनियर का थर्मामीटर गरम हुआ. चिंता चिता के समान है, और तुम चूतिया के समान हो शास्त्री ! तुम चुप काहे नहीं रहते बे ?” फिर मुड़कर बोले- देखो कॉमरेड !, दुखी होना अलग बात है, चिंतित होना बिलकुल अलग. दुःख क्षणिक है, और चिंता उसकी निरंतरता, जो आगे चलकर तनाव का रूप धारण कर लेती है. दुःख से उबरना आसान है, चिंता से मुश्किल, लेकिन तनाव से असंभव. तुम किस स्टेज में हो, सही बताओ ?”

चिंता है मालिक, कैंसर नहीं, जो आपको स्टेज बताएं. आप भी कहाँ राई का पहाड़ बनाने लग जाते हैं ? और वैसे भी चचा ग़ालिब ने फरमाया है-

कैदे हयात-ओ-बंदे ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं,

मौत से पहले आदमी, ग़म से नज़ात पाए क्यूँ.

वा वा वा वा.. वाह ! सीनियर जहाँ-जहाँ से खिल सकता था, खिल गया... इसीलिए तो तुमसे इतनी मुहब्बत है कॉमरेड !, दिन बना दिए कसम से. शास्त्री कुछ सीखो ?”

हाँ सीख लिए भैयाजी. यही कि लड़की न मिले तो लड़के से मुहब्बत कर लेनी चाहिए. जैसे आपको कॉमरेड से हो गयी है.कहते हुए शास्त्री गालियों की बौछार का इंतज़ार करते, आत्मरक्षा में भागने की तैयारी करने लगा.

सीनियर बहुत विनम्र भाव से बोला शास्त्री आज जीवनदान तुमको. पूरा का पूरा दिन. कुछ भी कह सकते हो. अच्छा कॉमरेड !.. वो शेर की पहली लाइन खोलना ज़रा. वो कैदे हयात-ओ-बंदे ग़म... क्या था ?”

लड़के ने शर्त रख दी.. खुल जायेगा मालिक, सबकुछ खुल जायेगा. हमने आपका पूरा दिन बना दिया, आप हमारी सुबह तो बना ही सकते हैं. एक तड़कती-भड़कती चाय से अपनी मुहब्बत साबित कीजिये.

सीनियर खिलकर फ़ैल चुका था- अरे रज्जा ! तुमको तो अपना कलेजा कल्हार के खिला दें, चाय क्या चीज़ है !फिर कुल्ला करते हुए जोर से चिल्लाया.. अबे शास्त्री ! चाय चढाओ बे ! इलायची मार के ! कल एकाउंट में ग़ालिब चचा की पेंशन भी आ गयी थी. कॉमरेड तुम शेर खोलो, रात को बोतल और दिवान दोनों हम खोलेंगे.

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तो ? और कितनों को बोला है आई लव यू ?” एक भीड़ भरी गली पार करते नदी की तरफ जाते हुए लड़की ने लड़के से मुस्कुराते हुए पूछा.

हाँ ! तीसरी क्लास में, एक लड़की थी. गोल-मटोल और और एकदम प्यारी सी. उससे कुछ ऐसा ही पूछा था मैंने.

तीसरी क्लास में ?” लड़की की बड़ी-बड़ी आँखें हैरानी से और बड़ी हो गयीं. झूठ ! एकदम सफ़ेद झूठ ! वैसे उसने क्या जवाब दिया था ?”

उसका घर स्कूल के बिलकुल पास में था, और मैं बहुत दूर से पढने आया करता था. उसके पास एक बहुत क्यूट सा बन्दर था. बन्दर घर पे लड़की की गैरमौजूदगी में उसे मिस करता तो उसके पापा कभी-कभी लंच के समय स्कूल लेकर आ जाया करते थे. मेरी बात का उसने क्या जवाब दिया था, ये तो नहीं याद. लेकिन इतना याद है कि स्कूल के ढेर सारे बच्चों में मुझे ही उसके बन्दर को छूने और उसके साथ खेलने की इजाजत थी.

वाह यार !लड़की ने अपने दोनों हाथ से लड़के के कंधे पर धौल जमाते हुए प्रसंशा की मुद्रा में कहा. लेकिन एक बात समझ नही आई. जब तुम बन्दर के साथ खेलते रहे होगे, तो वह लड़की दोनों में फर्क कैसे कर पाती होगी कि असली बन्दर कौन है ?” लड़की ने सड़क के एक छोटे गड्ढे को फांदते हुए कहा.

वेरी फनी, लेकिन मुझे हंसी नहीं आई. थोड़ी कोशिश और करो.लड़के ने सीधे चलते हुए जवाब दिया.

“जब तीसरी क्लास में तुम्हारी यह गत थी, तो भला अब तक न जाने क्या-क्या गुल खिलाये होंगे. या तो तुम जानते होगे, या फिर अल्लाह ही जानता होगा.” लड़की ने दोनों हाथ दुआ की शक्ल में बनाते हुए मज़ाकिया लहजें में आँखे उठाकर आसमान की तरफ देखा.

लड़का चलते चलते तीसरी क्लास में पहुँच गया था. स्कूल के बीचो-बीच एक बड़ा सा कटहल का पेड़, सूख कर गिरते हुए फल और पत्तियां, टाट बिछाते और उठाते समय उडती हुई धूल, टन-टन बजती हुई घंटी की आवाज़, चूरन और टाफी बेचने वाले की पोपली शक्ल, स्कूल के पास खेतों में पानी हहराता ट्यूबवेल सब आँखों के सामने जिंदा हो गए.

बचपन में चवन्नी वाला चूरन खाया है तुमने ?” लड़की से पूछते हुए उसके मुंह में पानी भर आया.

बहुत ज़्यादा. चूरन भी खाई है और कभी-कभी पैसे चुरा के. उस चक्कर में मम्मी की मार भी पड़ी है. मेरी मम्मी आज भी मुझे चोट्टी-चटोरी कहकर बार-बार चिढ़ाती हैं.लड़की की आँखें भी चमक उठी.

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सूरज डूबने के ठीक वक्त ही दोनों नदी के किनारे बिलकुल उसी जगह फिर से उग चुके थे. बिलकुल पास बैठे, बचपन की यादों के बारे में बातें करते, हँसते-खिलखिलाते एक दूसरे को कन्धों से धकियाते दोनों बहुत खुश थे. अँधेरा एक तम्बू की तरह और बड़ा होते हुए तेजी से पसरता जा रहा था कि लड़के ने बातों की स्टेयरिंग घुमाई- आज किसी बात का मतलब नहीं पूछ रही तुम ?”

जवाब में लड़की ने नदी की तरफ देखते हुए अपना सिर लड़के के कन्धों पर रख दिया. फिर थोड़ी देर बाद धीरे से बोली मेरा हॉस्टल जाने का बिलकुल भी मन नहीं हो रहा है.

“अच्छा ! फिर क्या मन हो रहा है ?”

लड़की ने देह के बाकी बचे भार को लड़के की तरफ टिकाते हुए कहा- मन कर रहा है, ऐसे ही, बिलकुल ठीक ऐसे, यहीं रात भर बैठी रहूँ. फिर तुम्हारी गोद में सो जाऊं.

वाह ! कुछ भाँग-वांग तो नहीं खाना शुरू कर दिया ? आँख दिखाना ज़रा !

लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया.

मुझे मत जवाब दो लेकिन हॉस्टल में तो देना पड़ेगा ?”

जवाब देते-देते एक उम्र कट गयी, बाकी भी उसी तरह कट जाएगी. हमपर सवाल नहीं खत्म हुए कभी, और न होंगे.लड़की आँखें बंद किये हुए बुदबुदाई.

शेर अच्छा है.. अब चला जाये ?”

तुम चाहते हो मैं जाऊं, तो बेशक !

लड़के का माथा ठनका, उसने लड़की का माथा छूते हुए तलाश किया कहीं बुखार तो नहीं है, फिर बोला... क्या हो गया तुमको ?”

कुछ नहीं

थोड़ी देर के बाद लडके ने कहा मुझे तुमसे कुछ बात करनी है.

लड़की आँखें बंद किये खामोश रही.

तुम्हारी बात पे बहुत सोचा मैंने. कई दिनों तक मुझे कुछ नहीं समझ आया. तब मैंने अपने आपको तुम्हारी जगह रख कर देखा. फिर मुझे धीरे-धीरे समझ में आने लगा. तुम बिलकुल सही थी. मेरी और तुम्हारी दुनिया बहुत अलग है. जगह बदलते ही हमारी दुनिया, हमारे सोचने-समझने का तरीका कितना बदल जाता है. हमारी पूरी फिलॉसफी मुंह बिराने लग जाती है.

लड़का कुछ देर तक ठहरा, फिर बोला मैं अपने किये पर शर्मिंदा नहीं हूँ. मुझे नहीं होना चाहिए. मुझे ही नहीं, बल्कि तुम्हे भी नहीं होना चाहिए. उस एक वक्त में, जब मैंने तुम्हें चूमा था, हम दोनों बहुत खुश थे. हमने अपने आपको पूरा होने जैसा महसूस किया था. दरअसल दिक्कत उस वक्त के बाद शुरू होती है. वह समय बहुत बड़ी दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा है, और सिर्फ वही छोटा सा हिस्सा ही हमारा है. बाकी दुनिया बहुत अलग किस्म की है. सबकुछ उतना ही कोमल, मासूम और पवित्र नहीं है. बल्कि ज़्यादातर बहुत क्रूर और घिनौना है.

लड़का एक गहरी साँस लेने के लिए रुका, फिर बोलता रहा. तुमने मुझसे ‘आई लव यू’ का मतलब पूछा था न ! सच कहूँ तो मुझे नहीं पता. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो तो मैंने कह दिया. मुझे लगता है कि दुनिया को ऐसा ही होना चाहिए. जिसे जो भी अच्छा लगे कह देना चाहिए. लेकिन फर्क पड़ता है कि आप कह किससे रहे हैं ? दीवारों से, नदी से या फिर आसमान से ? इन चीजों से कुछ भी कहना एकतरफ़ा मोहब्बत की तरह है. जवाब मिले तो सही, न मिले तो भी सही. लेकिन आदमी से कहने का कुछ तो मतलब होता है. मेरे लिए कुछ अलग हो सकता है, तुम्हारे लिए कुछ और. लेकिन होता तो है. हम जिस मिट्टी के हिस्से हैं, उसकी बनावट बहुत उलझनों भरी है. तुम सिर्फ तुम नहीं हो. मैं सिर्फ मैं नहीं हूँ. हम एक मुकम्मल दुनिया भी हैं, और उसके हिस्से भी. मेरा तुमसे लगाव होना सिर्फ तुमसे नहीं, तुम्हारी एक भरी पूरी दुनिया से रिश्ता कायम करना है.

मुझे भूख लगी है”... बात काटते हुए लड़की कुनमुनाई

चलो कुछ तलाशते हैंलड़के ने लड़की के बालों को सहलाते हुए कहा. फिर तुमको हॉस्टल छोड़ दूंगा. बोल देना कहीं फँस गयी थी.

नहीं, मुझे नहीं जाना हॉस्टल. मुझे तुम्हारे साथ रहना है.

ज़िद मत करो. इतनी रात को कहाँ जाओगी. मेरे लॉज में लड़कियों का आना मना है.

मैं कुछ नहीं जानती. मुझे अपने साथ ले चलो प्लीज !, कहीं भी.

एक पुराना सा रिक्शा उबड़-खाबड़ रास्ते से, ख़ामोशी और अँधेरे दोनों को चीरता हुआ लड़के के लॉज की तरफ बढ़ता चला जा रहा था. खयालों में एकाएक मकानमालिक का सख्त और गन्दा सा चेहरा उभर आया. लड़का बुदबुदाया- हमपर सवाल कभी ख़त्म नहीं हुए, और न होंगे.कंधे पर सिर टिकाये हुए लड़की एक बार फिर कुनमुनाई. उसने ऑंखें खोली फिर बंद कर ली. किसी जादू की तरह मकानमालिक का उभर आया चेहरा आईने की धूल की तरह साफ़ हो गया.

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अब तुम सो जाओ.रात के तीसरे पहर में गोद में दुहरी हो कर लेटी हुई लड़की के बाल सहलाते-सहलाते लड़के ने कहा.

नहीं.लड़की ने लड़के का हाथ पकड़ कर अपने गालों पर रखा, फिर चूम लिया.

अच्छा सुनो !”, लड़की अचानक से उठकर लड़के के बराबर में बैठ गयी. सुबह जब मकानमालिक पूछेगा कि यह लड़की कौन है, तुम क्या जवाब दोगे ?”

कह दूंगा चुड़ैल है, हवा बन के बंद दरवाज़े में घुस आई.

और मैं अपने हॉस्टल में बोल दूंगी कि मुझे घाट पर से भूत उठा ले गया था. ठीक ?” लड़की आँखें बंद कर फिर गोद में लुढ़क गयी. अँधेरे कमरे की खिड़की के एक सुराख से छन कर आती रोशनी में उसका चेहरा दिख रहा था. वह बेहद प्यारी और मासूम लग रही थी.

बिलकुल ठीक.लड़का फिर से उसके बाल सहलाने लगा.

हम सच में भूत और चुड़ैल होते तो कितना अच्छा होता न !लड़की अभी सोई नहीं थी.

क्यों ? फिर चुड़ैलों के हॉस्टल और भूतों के मकानमालिक नहीं होते ?”

लड़की आँखें खोली, कुछ सोचते हुए हूँ, कहा और उसके बाद कुछ गुनगुनाने लगी. थोड़ी देर बाद उठकर बैठ गयी और बोली- तुम मुझे जीने दोगे कि नहीं ?”

अब क्या हो गया ?”

तुमने मुझे ‘आई लव यू’ क्यों बोला ?”

मैंने कब बोला ?, अच्छा वो ? उसका तो मुझे मतलब भी नहीं पता !

नहीं पता तो बोले क्यों ?” लड़की ने बिलकुल बच्चे जैसी शक्ल बनाई.

बोल दिया तो बोल दिया !लड़के ने हाथ हवा में लहराया.

लड़की ने लड़के के होंठों को कसकर चूमते हुए कहा आई लव यू टू.

लड़के ने सवाल किया अब तुम्हे इसका मतलब पता है ?”

लड़की ने नहीं पता, कुच्छो नहीं पता, क्या कर लोगे ?” कहते हुए लड़के को फिर से चूम लिया.

तो ? फिर आगे क्या होगा ?”

लड़की ने लड़के को अपनी तरफ खींच कर बाहों में भरते हुए कहा दोनों मिल के पता करेंगे. पेचीदा सवाल है, थोड़ा टाइम तो लगेगा. वैसे भी जब तक कठिन काम समझ नहीं आये, तब तक आसान काम करते रहना चाहिए.

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