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बारिश की तरह अब्र से झर लूँ तो फिर चलूँ
रामधनी
तूं पत्थर तो नहीं है फिर पिघलता क्यों नहीं मुझसे
कैसे कहते हो कहो फिर मज़ा नहीं आया