अन्तर्मन यूँ टूट रहा है

 


    अन्तर्मन यूँ टूट रहा है

    बाबुल नहर छूट रहा है

 

    बसी बसाई सुन्दर नगरी

    जैसे कोई लूट रहा है

 

    बाहर-बाहर सबकुछ सच है

    अन्दर-अन्दर झूठ रहा है

 

    यादों का नश्तर दिल चीरे

    नासूरों सा फूट रहा है

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