फ़िजाँ का रंग गहरा हो गया है तेरी यादों का पहरा हो गया है हवाएँ खिलखिला कर बह रही हैं ये मौसम भी सुनहरा हो गया है मैं तुझको बादलों में ढूँढता हूँ ये चाँद अब तेरा चेहरा हो गया है ये दुनिया मुझको जादू लग रही है मैं तेरा और तूँ मेरा हो गया है
मुहब्बत में कई बातें ज़रूरी हैं मगर मुहब्बत क्या है, इससे भी ज़रूरी, क्या नहीं है . मुहब्बत डर नहीं है, ख़ुदा का घर नहीं है मुहब्बत फैज़ अहमद फैज़ है, हिटलर नहीं है मुहब्बत मस्त है लेकिन महज़ बिस्तर नहीं है कोई सरहद नहीं है, कोई बंदिश नहीं है मुहब्बत कुछ भी हो जाए, कोई साज़िश नहीं है . मुहब्बत में कई बातें.... मुहब्बत कोई दुश्वारी नहीं है मुहब्बत कोई बीमारी नहीं है मुहब्बत ख़ूब सूरत शय है जिसमें, कहीं भी कोई हुशियारी नहीं है मुहब्बत में नहीं है नाउमीदी, म…
इक दर्द था जो दिल को लुभाता ही रह गया वो आ न सका और मैं बुलाता ही रह गया वेटिंग , कभी बिज़ी तो कभी नॉट रीचेबल मैं ज़िंदगी को फोन लगाता ही रह गया दुख दर्द तो लपक के गले से लिपट गए सुख दूर खड़ा हाथ हिलाता ही रह गया कुछ वक़्त मेरा उलझनों के साथ कट गया कुछ किश्त सुलझनों की चुकाता ही रह गया मुझमें , मेरी पहुँच से बहुत दूर , बेअदब इक शख़्स था जो मुझको सताता ही रह गया बन-बन के टूटते रहे शीशा-ए-दिल के ख़्वाब शीशागरी के इल्म जुटाता ही रह गया
हाथ में ख़ून लगा खंज़र है कह तो रहा है चारागर है ! चाँद सितारे बाँट रहा है पाँव के नीचे मुरदाघर है क्या तक़रीर है माशाअल्लाह अद्भुत ताल है अद्भुत स्वर है नए चलन का बैरागी है महल में रहता है बेघर है एक कहानी फिर से गढ़ ली पिछली भी पुरज़ोर असर है
वही दुनिया को सम्हाले हुए हैं बड़ा सस्ता भरम पाले हुये हैं ये बच्चे हैं , फुदकने दो इन्हे भी ज़रा सी पी के मतवाले हुए हैं जहाँ तक तख़्त की खुशबू बिछी है वहाँ तक गोटियाँ डाले हुए है हुज़ूर एक आध फ़रमाइश तो करिए ये हर एक रंग में ढाले हुए हैं हमें दुनिया की फ़ितरत मत सिखाओ हमारे हाथ भी काले हुए हैं हज़ारों बार दिल टूटा हुआ है हज़ारों चाहने वाले हुए हैं जो फ़न , जो शौक मीठी सी चुभन थे वही अब रूह के छाले हुए हैं
सुनो तुम ए ! सुनो नादान लड़की ! बिछड़ जाने के बरसों बाद भी तुम ख़यालों मे , कहो कैसे चली आई ! तुम्हारी आदतें उफ ! कि इतनी बेतकल्लुफ़ ! तुम्हारी ये कटोरी जैसी आँखें अभी भी , आज , बरसों बाद , अब भी बड़ी हैरत से मुझको ताकती हैं जहां तक मैं न पहुंचा , मेरे अंदर वहाँ भी झाँकती हैं। तुम्हें क्या याद है अब भी ! मुहब्बत का सलीका बारहा मुझको सिखाती थी जो मुझसे हो नहीं पाता था और तुम हार जाती थी तुम अब हारे हुये मुझपर हमेशा मुसकुराती हो सिखाया था मुझे जो आज खुद ही भूल जाती हो ! …
Writer, Assistant Professor, Hindi Department, Central University of Jharkhand, Ranchi
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