बनाने वालों ने क्या-क्या बना दिया मुझको


    बनाने वालों ने क्या-क्या बना दिया मुझको

    उसे हिन्दू तो मुसलमाँ बना दिया मुझको

 

    जिधर भी जाता हूँ अँधेरा नज़र आता है

    मुसाफिरों ने क्या रस्ता दिखा दिया मुझको

 

    मैंने बचपन में जवानी औ बुढ़ापा देखा

    ज़िन्दगी तूने तमाशा बना दिया मुझको

 

    वो सख्श टूट चुका है बिखरने वाला है

    निराश आँखों ने सबकुछ बता दिया मुझको

 

    मेरी इंसानियत बदरंग न हो जाए कहीं

    इसी कोशिश ने ही शीशा बना दिया मुझको

 

    मैं चंद होंठों को मुस्कान देके लौटा हूँ

    ख़ुदी ने मेरी मसीहा बना दिया मुझको

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