खिड़कियाँ


    कभी बंद होतीकभी खुल जाती हैं खिड़कियाँ

    जिधर देखो उधर नज़र आती है खिड़कियाँ

 

    मुहल्ले की आँखें और घरों की हैं साँसे

    कितनी बड़ी जिम्मेदारी निभाती है खिड़कियाँ

 

    नीद की आगोश में होता है जब सारा शहर

    कभी ध्यान से सुनना बतियाती हैं खिड़कियाँ

 

    इंसानों के दुःखदर्द और बेपनाह खुशियों को

    इंसानों से पहले पहचान जाती हैं खिड़कियाँ

 

    नन्ही-मुन्नी परियों को स्कूल जाते देखकर

    पुलकतीकिलकतीखिलखिलाती हैं खिड़कियाँ

 

    गलियों मेंचौराहों पर जब भूखा सोता है कोई

    छुप-छुप के रोती हैंआँसू बहाती है खिड़कियाँ

 

    इंसानों को आपस में ही मरते-कटते देखकर

    बेबसी में चीखतीछटपटाती हैं खिड़कियाँ

Post a Comment

0 Comments