तुम्हारी याद



    तुम्हारी याद कि जैसे

    गहरी रात के सन्नाटे में घड़ी की टिक-टिक

 

    मैं सब कुछ बंद कर देता हूँ

    खिड़की..

    दरवाजे..

    पंखा..

    पानी का नल..

    गली से झाँकती हुई रोशनी..

 

    लेकिन घड़ी नहीं,

    क्योंकि

    तुमने ही तो बताया था एक दिन 

    घड़ी बंद करने से वक्त थोड़े न ठहरता है !

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