इक दर्द था जो दिल को लुभाता
ही रह गया
वो आ न सका और मैं
बुलाता ही रह गया
वेटिंग, कभी बिज़ी तो
कभी नॉट रीचेबल
मैं ज़िंदगी को फोन
लगाता ही रह गया
दुख दर्द तो लपक के
गले से लिपट गए
सुख दूर खड़ा हाथ
हिलाता ही रह गया
कुछ वक़्त मेरा उलझनों के
साथ कट गया
कुछ किश्त सुलझनों की चुकाता
ही रह गया
मुझमें, मेरी पहुँच से
बहुत दूर, बेअदब
इक शख़्स था जो मुझको सताता
ही रह गया
बन-बन के टूटते रहे
शीशा-ए-दिल के ख़्वाब
शीशागरी के इल्म जुटाता
ही रह गया
2 Comments
कुछ वक़्त मेरा उलझनों के साथ कट गया
ReplyDeleteकुछ किश्त सुलझनों की चुकाता ही रह गया
❤
बहुत खूब सर
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