बारिश की तरह अब्र से झर लूँ तो फिर चलूँ



    बारिश की तरह अब्र से झर लूँ तो फिर चलूँ

    शबनम सा ज़मीनों पे बिखर लूँ तो फिर चलूँ

 

    गीले लजीज़ लम्हे बहुत बेशकीमती

    ठहरो ज़रा सा आँख में भर लूँ तो फिर चलूँ

 

    हिज़रत में मुसलसल है अंधेरों के बयाबाँ

    कुछ रोशनी के पंख कुतर लूँ तो फिर चलूँ

 

    दरिया से बहक जाने हवाओं से महकने का

    सहरा से तिश्निगी का हुनर लूँ तो फिर चलूँ

 

    दुश्वारियों ने सोख लिया ज़िन्दगी का ताब

    तुमको गले लगा के निखर लूँ तो फिर चलूँ

 

    बस्ती से आ रहा किसी के चीखने का शोर

    बेबस ही सही फिर भी सिहर लूँ तो फिर चलूँ

 

    सब बावफ़ा थे और इक मैं ही था बेवफ़ा

    ये तोहमतें भी अपने ही सर लूँ तो फिर चलूँ

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