पढ़ना, लिखना और पढ़ा जाना सबसे बढ़िया संयोग है- रस्किन बॉन्ड



एक बड़े शहर में एक मशहूर लेखक ने वर्कशॉप आयोजित की। अपनी विश्वसनीयता के मुताबिक महँगी फीस के साथ। जब सभागार लोगों से लबालब भर गया, लेखक ने सबसे एक बड़ा ही सामान्य प्रश्न पूछा- “आप में से कौन कौन एक बढ़िया लेखक बनना चाहता है ?” सभी ने बेझिझक हाथ उठाया। सभी को बढ़िया लेखक जो बनना था। लेखक ने कहा- “तो फिर आप सब यहाँ क्या कर रहे हैं ? जाइए और लिखिए।" रस्किन बॉन्ड की किताब लेखक कैसे बनें कुल मिलाकर यही संदेश देती है। चूंकि किताब किशोर वय को ध्यान में रखकर लिखी गयी है, इसलिए इस एक संदेश को छोटे छोटे भागों में बाँट दिया गया है। बहुत ही मनोरंजक तरीके से।

सबसे पहले बॉन्ड शुरुआत करते हुये यह बताते हैं कि मैं क्यों लिखता हूँ।

वे लिखते हैं क्योंकि उन्हें लिखना बेहद पसंद है। इस बात मे ही वह राज़ छुपा है जो आपको कुछ बेहतर बना सकता है। आप वही काम ढंग से कर सकते हैं, जो आप ढंग से कर सकते हैं। यानि जो आपको भीतर से आनंदित करता है। वह काम जो आपको थकाता नहीं, जो समय को शून्य कर देता है। जिसे करके आप सार्थक महसूस करते हैं। बॉन्ड खुद कहते हैं कि “लिखना, मेरे लिए, दुनिया का सबसे सहज और महानतम आनंद है। मेरे लिए जीवन असहनीय हो जाये अगर मेरे पास रोज़ लिखने की यह आज़ादी न हो। और सतही पेशेवर लेखकों की तरह मैं सबको खुश करने के लिए नहीं, बल्कि वास्तव में मैं स्वयं को खुश करने के लिए लिखता हूँ।“

अपने काम को लेकर बहुत कम ऐसे खुशकिस्मत लोग होते हैं जो यह कह सकें कि “मैं इस बात को लेकर निश्चय ही गंभीर था कि लेखन मेरे जीवन का मुख्य व्यवसाय होगा।“ बॉन्ड की परवरिश एक समृद्ध और सुसंस्कृत परिवार में हुई है, जैसा कि उनकी कहानियाँ और संस्मरण बताते हैं। उनके जीवन में विविध लोगों और यात्राओं की रोमांचकता का खूब योगदान रहा है। लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। इससे यह साबित नहीं होता कि ऐसी परिस्थितियों में पला बढ़ा हर व्यक्ति अपने जीवन में बहुत उल्लेखनीय काम ही करेगा। ज़्यादातर यही तो होता है कि अमीर लोग और ज़्यादा अमीर बनने का ख्वाब देखते हैं। बॉन्ड ने लेखक बनना खूब सोच समझ कर चुना था। आप भी चुन सकते हैं।  

वैसे तो जीवन में हर काम को करने का सबसे बेहतर तरीका है उसे पूरे होश में करना। जो भी आप कर रहे हों , फिर वह चाहे खाना या पानी पीने जैसा साधारण काम ही क्यों न हो। उसे बिलकुल होश में कीजिये। यानि एक समय में एक ही काम। लेखन के लिए यह तकनीकी बहुत फायदेमंद है। इस सजगता से आपमें चीजों को देखने की एक दृष्टि पैदा होती है। लेखन के लिए सबसे ज़रूरी है, लिखते रहना, शब्दों की सुंदरता और उनके संयोजन को गौर से देखते रहना, सुनते रहना और उनपर ध्यान देते रहना।

दुनिया में हर काम किसी न किसी समय एक ऊब पैदा करता ही है। भीतर से एक सवाल उठता है कि आखिर इसे हम क्यों कर रहे हैं। ऐसे में किसी सस्ते भावनात्मक वाक्य से ऊर्जा मत ग्रहण कीजिये। कुछ समय के लिए अपने काम से छुट्टी ले लीजिये और उसके औचित्य पर विचार कीजिये। कोइ काम करते हुये नहीं, बल्कि उसे स्थगित करके ही उसके औचित्य पर विचार किया जा सकता है। बहुत क्रियाशील मस्तिष्क सही निर्णय नहीं ले सकता। अच्छे निर्णय, भाव या विचार आपके मस्तिष्क में तब प्रवेश करते हैं जब आप बिलकुल शांत होते हैं। अगर आप लिखते हैं तो यह बात गौर करने लायक है। आपकी धारा धीमी या मटमैली हो जाये तो जो आप लिख रहे हैं, उसे एक तरफ रख दें। लिखने की मेज पर अधिक समय बिताने से शब्द अपनी ताज़गी खो देते हैं। कोई भी काम अगर ज़बरदस्ती किया गया है तो उसके पोर पोर से नीरसता झाँकेगी ही।

लिखना एक समग्रता भरा काम है। यह जीवन से बहुत गहराई तक जुड़ा है। यह महज़ आजीविका कमाने जैसा नहीं है कि, किया और घर चले आए। कला की उच्चता का पैमाना जीवन ही है, और कुछ नहीं। आपका बातें करना, भोजन करना, यात्राएं करना या फिर आजीविका कमाना, आपके जीवन को प्रतिबिम्बित करता है। यह सब साधारण तरीके से किया जा सकता है और कलात्मक तरीके से भी। मसलन जिसको भोजन से प्रेम नहीं है, जो स्वाद की अनुभूति को बहुत गहराई से नहीं महसूस कर सकता, वह जीवन से प्रेम कैसे कर सकता है। कला से संबन्धित हर काम जीवन पर गहरी पकड़ की मांग करता है। बॉन्ड कहते हैं “एक कलाकार को जीवन पर अपनी पकड़ नहीं खोनी चाहिए। जब हम एक आरामदायक वृद्धावस्था चुनते हैं, हम उस पकड़ को खो देते हैं।“ कला के लिए, फिर वह चाहे जो भी हो, आपको कुछ जोखिम उठाने पड़ते हैं। एक अतिसुरक्षापूर्ण जीवन आपकी रचनात्मकता को कुंद बना देता है। आपकी उम्र जो भी हो, अगर आप जीवन के अंतिम समय तक की आर्थिक और मनोवैज्ञानिक सुरक्षा को लेकर बहुत सचेत हैं तो आप एक अच्छे कलाकार नहीं बन सकते। बॉन्ड यह जोड़ना नहीं भूलते कि “एक व्यक्ति की आंतरिक शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि वैसे अम्लान सौंदर्य को किस तरह अपने भीतर समेटे रहता है। जीवन में ब्याज दरों, लाभांशों, बाज़ारी ताकतों और असीमित प्रौद्योगिकी के अलावा बहुत कुछ है।"

लेखक बनने के लिए मौन का और एकांत का होना ज़रूरी है। ध्यान रहे कि यह मौन या एकांत थोपा हुआ नहीं, बल्कि सहज चुनाव होना चाहिए। मौन सिर्फ बाहर की दुनिया में नहीं, अपितु भीतर भी। जब आप शांत और मौन होते हैं तो अनुभूतियों को ज्यों का त्यों अपने भीतर उतरने देते हैं। लिखने के लिए इन सहज, स्वच्छ और निर्मल अनुभूतियों का होना ज़रूरी है। आप जो भी लिखना चाहते हैं, उसके बारे में ज़्यादा चर्चा मत कीजिये। मैं स्वयं बहुत दिनों से डायरी लिखता रहा हूँ। कोरोना काल में बिलकुल खाली होने पर मेरा लिखना बहुत ज़्यादा हो गया था। समस्या यह थी कि मैं कहानियाँ और कवितायें लिखना चाहता था, लेकिन कुछ दिनों तक उससे संबन्धित कोई विचार मेरे मस्तिष्क में कौंध ही नहीं रहा था। अपनी यह समस्या मैंने एक वरिष्ठ लेखक को बताई। उन्होने बताया कि आप जो भी करते हैं, जो भी लिखते हैं, वह आपकी जीवन ऊर्जा से ही शक्ति खींचती है। अगर सोचे हुये को बहुत विस्तार से बोला या लिखा जाये तो वह घनीभूत होकर कविता या कहानी में नहीं उतर सकता। इसीलिए कहा जाता है कि सवाल हो, कहानी हो या फिर कविता, भीतर भीतर धीमी आंच में उसे पकने देना चाहिए।

बॉन्ड एक भरे पूरे परिवार में रहते हैं। वे कहते हैं कि “परिवार से, लोगों से प्रेम होना ज़रूरी है लेकिन चिंतन मनन के लिए अकेलापन होना भी ज़रूरी है।“ अकेलापन से तात्पर्य महज़ शारीरिक रूप से अकेले होने से नहीं है। शारीरिक रूप से अकेले होना एक विलासिता भी होती है जो हर किसी को हासिल नहीं होती। यह एक पूर्वाग्रह भी हो सकता है। साथ ही आपके कलात्मक जीवन के लिए नुकसानदेह भी। दरअसल हम क्या हैं, कैसे हैं, यह हमारे पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों से परिभाषित होता है। इन सम्बन्धों के बिना आपका अस्तित्व तभी कायम हो सकता है जब आप किसी दूसरे ग्रह के निवासी हों। समस्या यह है कि दूसरे ग्रह के निवासी होने पर आप लिखेंगे किसके बारे में ? और उससे भी महत्वपूर्ण सवाल है कि आपके लिखे को पढ़ेगा कौन ? इसलिए सामाजिक संबंध कलाकार के लिए अभिशाप नहीं, वरदान हैं। आपको बस अपना एकांत गढ़ना पड़ता है। भीड़ में होकर भी अकेले होना एक कला है, अन्य कलाओं की तरह। लेखन वह काम है जो वैसे भी हमें नितांत अकेला कर जाता है। अधिकांश समय आप अकेले होते हैं। आप अकेले ही काम करते हैं।

लेखक बनने के लिए आपके पास जीवनबोध का होना ज़रूरी है। इस जीवन बोध में सुख भी है दुख भी। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक को नकार कर दूसरे को नहीं पाया जा सकता। इसलिए छोटी छोटी बातों में खुश रहने की कला विकसित करना लेखक की सबसे बड़ी काबिलियत मानी जाती है। बॉन्ड कहते हैं “खुश रहना स्वभाव पर निर्भर करता है न कि परिस्थितियों पर। हम दुख, दर्द और त्रासदी को रोक नहीं सकते। फिर भी, अपने आस पास देखने पर हम पाते हैं कि अधिकतर लोग सच में जीवन का आनंद उठा रहे हैं।“

बॉन्ड कहते हैं “लेखक कोई भी बन सकता है लेकिन अच्छा लेखक हर कोई नहीं बन सकता।“ यह बहुत महत्वपूर्ण बार है। और इसके लिए हमें यह तय करना होगा कि हम “क्यों लिखें ? सच में आखिर क्यों ?” प्रसिद्धि के लिए ? शक्ति और प्रभाव के लिए ? पैसे के लिए ? या फिर खुशी के लिए ? इन तीन चार सवालों के जवाब ही आपके लेखन के औचित्य को सिद्ध करेंगे। शक्ति, प्रसिद्धि और पैसे के लिए भी लिखा जा सकता है। लेकिन इस लिखने में एक तनाव होगा। अगर हमारी कल्पना के अनुरूप चीज़ें नहीं हुईं तो प्रत्येक कदम पर आपको निरर्थकता का बोध होगा। निरर्थकता का यह बोध आपके लेखन में दिखाई देगा। और अगर इन चीजों के लिए हम लिखते हैं तो यह भी समझ लें कि इन चीजों की कोई सीमा नहीं है। आपके सामने सदैव आपसे ज़्यादा धनी, प्रसिद्ध और आपसे ज़्यादा लोकप्रिय लेखक मौजूद रहेगा। जब हम किसी ओछी चीज़ को अपना प्राप्य बनाते हैं तो हमारा जीवन एक प्रतिक्रिया बन कर रह जाता है। हमारी आंतरिक क्षमता अपने सम्पूर्ण सौंदर्य के साथ खिल नहीं पाती। वहीं, जब हम कोई काम स्वांतः सुखाय करते हैं तो वह अपनी पूरी प्रज्ञा और असाधारणता के साथ निखर कर सामने आती है। जब हम कोई काम पूरे समर्पण के साथ करते हैं तो प्रसिद्धि, पैसा और लोकप्रियता सहउत्पाद यानि बाईप्रोडक्ट के रूप में हमारे खाते में आ ही जाती है। इसलिए कोई काम प्रसिद्धि के लिए नहीं, सिद्धि के लिए करें।

बॉन्ड इस पर भी बात करते हैं कि “लेखक बनने की तैयारी कैसी होनी चाहिए।“ ध्यान रहे कि लेखन एक पार्ट-टाइम जॉब नहीं है। व्यक्ति का सोना-जागना सब इस दायरे में आता है। हमारी बातें, हमारा व्यवहार, हमारी समूची ऐंद्रिक अनुभूति, यहाँ तक कि हमारे सपने भी। इनसे अलग कला का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता। हमारा अपना जीवन ही इन सब चीजों का आधार बन सकता है। उधार का जीवन नहीं। लिखने के लिए आपको अतिरिक्त सचेत नहीं होना पड़ता, बस सहज तरीके से सचेत होना काफी है। जिसमें आपका चेतन और अचेतन दोनों मन सहज रूप से भागीदार हो। वही लिखें, जो आप लिख सकते हैं। जिन जगहों के बारे में आप लिख रहे हों, उन्हें आप सच में जानते हों। अगर फंतासी भी लिख रहे हों तो वह अपने देश और संस्कृति और भाषा पर आधारित होनी चाहिए। इससे प्रामाणिकता आती है। लिखने का विषय चुनने में भी यही बोध होना चाहिए। जर्मन कवि राइनर मारिया रिल्के अपने पत्रों में एक नवोदित लेखक को समझाते हुये कहता है लिखने को अगर कुछ नहीं मिल रहा है, तो अपने बचपन की तरफ मुड़ जाइए। वहाँ कुछ न कुछ अवश्य होगा। और सबसे ज़्यादा प्रामाणिक।  फिर आपको किसी से यह नहीं पूछना पड़ेगा कि मैंने कैसा लिखा है। बॉन्ड कहते हैं कि लिखने की तैयारी के लिए आपके पास नोटबुक होनी चाहिए। हर वक्त। खयाल किसी भी वक्त आते ही होंगे, बस आपको जागरूक रहना होगा। यहाँ तक कि आप अपने सपनों को भी कहानियों में बदल सकते हैं।

इस किताब का एक हिस्सा इस बात पर है कि “पाठकों को अपनी भाषा से चमत्कृत करने की कोशिश मत कीजिये। लंबे और घुमावदार वाक्य पाठकों की रुचि कम करते हैं।“ अपने शुरुआती लेखन में हम सभी का मुख्य उद्देश्य दूसरों को प्रभावित करना होता है। अपनी सतही रचनाएँ लेकर दूसरों के पीछे भागना आपको याद है ? त्वरित अनुमोदन की यह अधीरता एक लंबे समय में कम होती है, जब आपको अपने लिखे पर भरोसा होने लगता है। भाषा के संदर्भ में भी यही होता है कि हम हमेशा ओजपूर्ण शब्दों, लंबे वाक्य विन्यास, चमत्कृत कर देने वाली भाषा और अलंकारपूर्ण शैली को अपनाते हैं। यह आपकी भीतरी बेचैनी और अस्तव्यस्तता को ही दर्शाता है। लेकिन सवाल यह है कि कोई आपको क्यों पढ़ेगा। मैंने अक्सर काव्य पाठ कर रहे निरीह कवियों को देखा है। वे एक ही कविता में विविध प्रकार के बिम्ब इस तरह ठूँस कर आपके सामने खड़े होते हैं कि अब कोई चमत्कार होने ही वाला है। लेकिन अंदर की बात यह है कि अगर आपको अपना ही लेखन अंदर से सहज नहीं बनाता, गुदगुदाता नहीं तो आप दूसरों से उसके अनुमोदन की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। जो बात आपने समझी नहीं, वह दूसरों को समझाने की जल्दी ही क्या है ? इसलिए वही लिखिए जो दिल से निकले, आपको अच्छा लगे। सबके पास लिखने के लिए कुछ न कुछ होता है। कोई भी इस वरदान से रिक्त नहीं है। बस अपनी शैली और अपना स्वर खोजिए। जो चीज़ आपको अच्छी लगेगी दूसरों को अच्छा लगने से कोई ताकत उसे नहीं रोक सकती।

लिखना कृत्रिम और मशीनीकृत नहीं होना चाहिए। अगर लिखने में सजीवता और तरलता नहीं है तो वह मुर्दा लेखन होगा। एक दिन आप अपने लिखे से ही ऊब जाएंगे। और बॉन्ड कहते हैं “वह लेखक जो अपने लिखे से स्वयं ही ऊब जाये, बतौर लेखक उसका काम तमाम है।“ यह लेखन ही नहीं, जीवन के बहुविध क्षेत्रों में ध्यातव्य है। शारीरिक जरूरतों के अलावा हर मनोवैज्ञानिक चीज़, जो औचित्य पूर्ण न हो, बहुत जल्दी ऊब पैदा कर देती है। लिखने के लिए प्रेरणा का स्रोत अगर आपके भीतर नहीं होगा, तो बाहरी प्रेरणाएं आपको सिर्फ भ्रमित करेंगीं। इसलिए किसी काम को करने की जल्दी की बजाय, इस पर थोड़ा समय निवेश करना चाहिए कि यह मुझे क्यों करना है। सम्यक सोच ही सम्यक कर्म की तरफ ले जाती है। नहीं तो वह आधा अधूरा ही होगा। और बॉन्ड के मुताबिक “आधा किया, न किए के बराबर है।“ बिहारी का वह दोहा तो आपने पढ़ा ही होगा अनबूड़े बूड़े, तिरे, जे बूड़े सब अंग। यानि आधा अधूरा डूबने वाले डूब जाते हैं। जो पूरा डूबते हैं वह पार हो जाते हैं। वे तिर जाते हैं, वे तर जाते हैं।

सही कामों के लिए एक और बात जानने योग्य है। आपको क्या करना चाहिए, इससे ज़्यादा महत्व इस बात का है कि आपको क्या नहीं करना चाहिए। अगर आपको अपना लिखा हुआ पसंद नहीं आ रहा, भीतर से खुशी नहीं दे रहा तो आपके लिए बॉन्ड की एक सलाह है। “रद्दी टोकरी की ईजाद ज़रूर निराश लेखकों ने की होगी।" इज़राईल के मशहूर लेखक युवाल नोवा हरारी कहते हैं कि “मेरे संपादकों का आभार जिन्होने मुझे बताया कि कुंजीपटल यानि की-बोर्ड की डिलीट बटन किसी भी अन्य बटन से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है।“ एक और बात कि छपास की महत्वाकांक्षा न पालें। अगर आप अच्छे लेखक हैं तो आज नहीं कल ज़रूर छपेंगे। लिखने में ऊर्जा व्यय कीजिये, छपने में नहीं।

सबसे अंत में रस्किन बॉन्ड की यह सलाह याद रखी जानी चाहिए कि “पढ़ना, लिखना और पढ़ा जाना सबसे बढ़िया संयोग है।" इसमें संयोग शब्द पर ज़्यादा ध्यान दिये जाने की जरूरत है। इस एक बात में निष्काम कर्म, अनासक्त योग, साक्षी भाव और निस्संगता का मर्म समाया हुआ है। यह भी कि हमें बेहतर से बेहतर करना चाहिए, और बदतर के लिए तैयार भी रहना चाहिए। लेखन जीवन के तमाम कार्यों में से एक काम है। बढ़िया और आनंददायक काम है। अगर थोड़ा जोख़िम उठा सकें, अधीरता को एक तरफ हटा सकें, जीवन रस में तल्लीनता से डूबने के लिए थोड़े समय का निवेश कर सकें तो इससे बेहतर कुछ और नहीं हो सकता। दुनिया में कम ही ऐसे काम होते हैं जो जीवन के साथ एकमेव हो सकते हैं। लेखन उनमें से एक है।

इति।

जगदीश सौरभ

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