कहानियाँ ही सुपरस्टार को बचा सकती हैं, और दुनिया को भी।

 


'सुपरस्टार की मौत'

रामकुमार सिंह की यह किताब उपन्यास भी है, प्रतीक भी है, सलाह भी है और ज़रा कड़े ढंग से लीजिये तो चेतावनी भी। सुपरस्टार कहते ही हमारे जेहन में जो छवि उभरती है वह लाल और नीली रोशनियों से लिपटे सुनहले पर्दे पर एक वन मैन आर्मी की आकृति है जो मनोरंजक तरीके से सबकुछ ठीक कर देता है। पापियों को सज़ा देता है, डूबकर प्रेम करता है, चिंघाड़कर रोता है, बेहद सुरीले अंदाज़ में गाता है, मोहक नृत्य करता है, गोलियों या चापड़ से घायल होकर भी सौ-पचास लोगों को धूल चटा देता है। उसका दिमाग कंप्यूटर से भी तेज़ चलता है। दो से ढाई घंटे की पिक्चर में सुपरस्टार के जीवन का हर पहलू अनुकरणीय है। त्याज्य कुछ भी नहीं है।

सुपरस्टार सबकुछ जानता है कि उसके इतने बड़े होने के पीछे कई हाथ होते हैं। लेकिन नीली और लाल रोशनियों की चकाचौंध में वह पीछे की उन मोमबत्तियों को भूल जाता है जिसकी रोशनी के दायरे में उसकी छवि बड़ी होती जाती है। एकदिन जब वह उस मोमबत्ती को पूरी तरह भुला देता है तो अचानक से उसकी विराट छवि अंधेरे में कहीं खो जाती है। चकाचौंध वाली रोशनियाँ सुपरस्टार को जितना देदीप्यमान बनाने की हैसियत रखती हैं, उतना ही उसको अंधा बनाने की भी। सिनेमा में नायक हैं, खलनायक हैं, डायरेक्टर हैं, प्रोड्यूसर हैं, और भी बहुत कुछ है लेकिन पीछे की ओर धीमी जलती हुई मोमबत्ती है कहानी। अगर कहानी नहीं है तो कुछ नहीं है। पूरी दुनिया ही एक कहानी है तो फिर कहानी के बिना सिनेमा क्या है ? और क्या है सुपरस्टार ?

सुपरस्टार, मुंबई, स्ट्रगलर्स और कहानियों के इसी ताने-बाने से तैयार है एक भरा पूरा उपन्यास सुपरस्टार की मौत। रामकुमार सिंह का अंदाज़े बयां इतना जीवंत है कि जो यह भी नहीं जानता कि मुंबई इस देश के भूगोल में किस बिन्दु पर अवस्थित है वह भी मुंबई को महसूस कर सकता है। यूँ लगता है जैसे किसी ने मुंबई को स्याही में घोलकर कागज पर उतार दिया हो। वर्सोवा गाँव का यह चित्रण देखिये- “बंगले के सामने से अंदर घुसते ही वर्सोवा गाँव की रहस्यमयी गलियाँ शुरू होती हैं, जिनमें मुंबई की मछलियाना महक है, बनारस की गलियों का अंदाज़ है। आपको यकीन करना होता है कि ईश्वर है। उसने यह खूबसूरत दुनिया बनाई। पहाड़ बनाए। ऊंची इमारतें बनाई और बाद में जो सामान बच गया उससे उनमें वर्सोवा गाँव की चार से पाँच मंज़िला इमारतें बनाईं, जिसमें न लिफ़्ट लगती है, न फायर ब्रिगेड पहुँच सकती है।“ इसी तरह मढ आइलैंड के बारे में लिखते हैं- ”यह मुंबई शहर का एक लंबा सा फेफड़ा है। मढ आइलैंड है। मढ गाँव स्ट्रगलर्स के लिए वरदान है।“

हमलोग जब दिल्ली में रहते थे तो दिल्ली से बाहर नहीं निकलना चाहते थे। लगता था दिल्ली में ही सबकुछ है, उसके बाहर बस एक बड़ा सा निर्वात। दिल्ली से बाहर जाकर बसने या नौकरी करने पर एक दूसरे से मज़ाक भी इसी अंदाज़ में होता था कि तुमको दिल्ली हो गया है। बाहर निकलो तो जानो कि दुनिया में और क्या-क्या है ? रामकुमार सिंह ने मुंबई को कुछ इसी अंदाज़ में परिभाषित किया है- “लोग कहते हैं मुंबई शहर नहीं, एक आदत है। सपने देखने हर आदमी को यहाँ आना चाहिए। यह शहर ख़यालों की एक मंडी है।“

आपको मुंबई ज़िंदगी के वो तौर तरीके सीखा देती है जो आप और कहीं नहीं सीख सकते। जैसे यहाँ की लोकल ट्रेन में आप बस गेट पर खड़े हो जाइए, उसके बाद आपको कुछ नहीं करना होगा, लोग खुद ही धकेल कर आपको भीतर कर ही देंगे। उसी तरह यह शहर भी अपने बाशिंदों को शहर के कायदे कानून समझा सिखा ही देता है। रामकुमार लिखते हैं- “यह शहर जंगल की उस माँ की तरह है, जो अपने बच्चों को सिखाती है कि जो शिकार नहीं करेगा, वह खुद शिकार हो जाएगा। अगर वह शिकारी नहीं है तो उसे ज़िंदा रहने के लिए शिकारियों को धोखा देने की कला सीखनी होगी।“ उपन्यास में इस शहर के बारे में ऐसी और भी कई बाते हैं जो आपको जो आपके चेहरे पर आश्चर्य और मुस्कान एक साथ ले आएंगी। मसलन “यहाँ समंदर की लहरों से ज़्यादा शराबें बह रही हैं।“, “इस शहर में मेहनत से ज़्यादा समझौते करने पड़ते हैं।“, “यह शहर ऐसा है जहां आदमी दलाली भी गर्व से खाता है। इस शहर में दलाल स्ट्रीट सम्मानित गलियों में से एक है।“, “इस समंदर में घड़ियाल ज़्यादा हैं कि शहर में ?”, “यह शहर उतना ही समंदर के भीतर है उतना समंदर के बाहर।“, “इस शहर में जितने लोग सड़कों पर घूम रहे हैं, उससे ज़्यादा कब्रों में कुलबुला रहे हैं।“

रामकुमार सिंह का यह उपन्यास मूलतः कहानी के बारे में है। पात्र, घटनाएँ और परिस्थितियाँ इस कहानी के सहउत्पाद हैं। इनमें वर्तमान समय के प्रसिद्ध इज़राइली इतिहासकार युवाल नोवा हरारी की बातों की भी झलक मिलती है। अंदाज़ अलग है लेकिन कहानियों के बारे में इतनी मज़ेदार और सच्ची बातें आपको बहुत कम मिलेंगी। लेखक लिखता है- “सारा संसार कहानियों के इर्द-गिर्द ही चल रहा है। दादी ने कहा था कहानियाँ सोने का खज़ाना है। उन्हें कोई लूट नहीं सकता। वे तुम्हारी अपनी हैं। ,”यह कहानी नहीं, सोना है। जैसे बुरे से बुरे दौर में पुरखे अपना सोना दबाकर रखते थे। उसे बेचकर अपनी तंगी के दिनों को संवार लेते थे, उसी तरह कहानी कहकर आप कभी भी ज़िंदा रह सकते हैं।“ दादी सावधान भी करती थीं कि “किसी गलत आदमी को सही कहानी नहीं देनी चाहिए और सही आदमी को गलत कहानी।“

बतौर लेखक कहानी की ताकत का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि “जब दुनिया भूखी हो तो उसे रोटी की कहानी सुनाकर आप उम्मीद दे सकते हैं। जब दुनिया डूब रही हो, तो किनारे की कहानी सुनाकर उसे डूबने से बचाने का हौसला दे सकते हैं। जब दुनिया नफ़रत की कहानियाँ सुनकर एक दूसरे को मार रही हो, तो ज़िंदगी और प्यार की कहानी सुनाकर आप उसके पागलपन को रोक सकते हैं।“ ऐसा भी नहीं कि कहानी कोई दुर्लभ सी चीज़ है। वह सबके पास होती हैं, जिनकी स्मृतियाँ सलामत हैं। “हर लेखक का दिमाग फिंगरप्रिंट की तरह होता है। दुनिया में जितने लोग हैं, उतनी कहानियाँ हैं। किसी एक लेखक की कहानी दूसरे लेखक से नहीं मिल सकती। जैसे किसी आदमी का फिंगरप्रिंट किसी दूसरे से नहीं मिलता।”

कहानियों से पूरी दुनिया चलती है और हैरत की बात है कि सिनेमा से वही गायब होती जा रही है। गायब क्यों न हो, जबतक लोगों को कहानीकार एक आम आदमी की जगह कोई जादुई चीज़ लगती रहेगी जिसे रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत नहीं है। ऐसा माना जाता है कि वह हवा खाकर और हवा पीकर ही कहानियाँ लिख सकता है, उसे रुपये पैसे देना इंडस्ट्री अपमान समझती है। उपन्यास का चरित्र लड़का जो अपनी सामान्य ज़िंदगी से बगावत करके एक लेखक बनने के लिए मुंबई आया है, सिनेमा की मंडी में आया एकदम ताज़ा और मासूम टैलेंट कुछ ही दिनों मे शहर और इंडस्ट्री की इस हकीकत को जान लेता है। पहले ”वह नहीं जानता कि इस शहर में लेखक के जीने के नियम क्या हैं। उसे नहीं पता कि उसका लेखक होना इस शहर की जीडीपी में कितना योगदान देता है।” लेकिन क्रमशः उसे पता चलता है कि “इस शहर में कहानियों का सबसे बड़ा कारोबार है। यहाँ कहानियों की खरीद फारोख्त वैसे ही है, जैसे हम सब्ज़ी मंडी में सब्जियाँ खरीदते हैं।” उसे यह भी पता चलता है कि “शहर से बाहर किसी से कहो तो लोग हँस पड़ेंगे कि इस शहर में घरों में घुसकर पैसा या सामान चुराने वाले चोरों से ज़्यादा बड़ी संख्या कहानी चोरों की है।“

लड़का मुंबई में एक हसीन ख्वाब सँजोये कहानियाँ लिखने आता है। इस शहर की रवायत से अनजान हर उस लेखक को रामकुमार सिंह आगाह करते हैं कि ”कारपोरेट के जंगल का लेखक हिरण के बच्चे की तरह होता है। जिसे सिर्फ फुदकना आता है, मस्त रहना आता है लेकिन उसे नहीं पता कि कब किस झाड़ी की ओट से कोई शेर, कोई लकड़बग्घा या भेड़िया उसको दबोच ले। वह रेगिस्तान की मृगमरीचिका की तरह होता है। उसे लगता है कि वह पानी की तरफ भाग रहा है लेकिन असल में वह अपनी मौत की तरफ भाग रहा होता है।“ हीरोइन बनने आई लड़की को भी एक इसी तरह की नसीहत मिलती है कि “टॉप हीरोइन बनने का एक ही मंत्र है कि अपना अंगूठा अपनी अंडरवियर के इलास्टिक में फँसाकर रखो, ताकि कभी कभार कुछ समय मिल जाये तो उसे पहन भी सको।“

सुपरस्टार की फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही हैं। लेखक के शब्दों में कहें तो “जिसके नाम के पत्थर भी पानी में तैरते थे, उसके पत्ते भी अब डूबते जा रहे थे।“ “उसके पास सबकुछ आ गया था लेकिन सच सुनने का साहस ख़त्म हो गया था।“ “यहाँ लोग सबकुछ जानते थे। वे हर बिजनेस का आकलन कर लेते थे लेकिन वे यह फार्मूला आजतक नहीं ढूँढ पाये कि एक हिट फिल्म कैसे बनाई जा सकती है।“  “लेकिन लड़का तो राइटर था। वह जानता था कि दुनिया में तो ऐसा बहुत कुछ होता है जिसे लोग कुछ और समझते हैं, जबकि वह होता कुछ और है।“ एक पेज थ्री पार्टी में सुपरस्टार से वह यह कहने का साहस कर बैठता है “आपकी हर फ्लॉप फिल्म की प्रॉबलम वही है सर कि आप हॉलीवुड या विदेशी फिल्म की गाँड़ में घुस जाते हैं, गू निकालकर लाते हैं और बॉक्स ऑफिस पर हग देते हैं। ऑडियन्स को बदबू आती है। इसीलिए आपकी फिल्में देखने लोग थियेटर में नहीं जाते हैं। आपकी कहानियों में हिंदुस्तान नहीं है सर।“ उपन्यास में इसी से मिलती जुलती एक बात और है कि ”वे लोग लॉस एंजेल्स से ऑक्सीज़न लेते हैं और बालीवुड में सिर्फ गैस छोडते हैं।“

लड़का और लड़की दोनों संघर्ष करते हैं। दुश्वारियों से आँखें मिलाते हैं। दरअसल इस शहर का चेहरा भी के गोमा के चेहरे की तरह है जो भावहीन है और क्रूरता ही उसका आभूषण है। लड़के और लड़की को कहीं उम्मीद बंधती है तो वे खुद कहीं टूटते हैं। लेखक ने उनके टूटने के बहाने इस देश के लाखों स्ट्रगलर्स के टूटने का दर्द बयान किया है इस टूटने में उन सब ग्रन्थों का खंडन है, जो यह दावा करते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। ऐसी सूक्तियाँ एक धोखे की तरह आती हैं। वे अवसर पाकर नई परिभाषा गढ़ लेती हैं। जैसे देर से मिला न्याय न्याय नहीं होता उसी तरह बहुत देर से मिली सफलता भी सफलता नहीं होती।“

उपन्यास में प्रेम के बारे में भी बहुत शानदार बातें कही गयी हैं। “किसी भी प्रेम की पूर्वपीठिका सर्वाधिक आनंददायी होती है। सामने देखो तो यूँ लगता है, हजारों तितलियाँ आसमान में हैं।“, “काली चाय प्रेम की तरह है। एक बार उबाल गयी तो नीचे आंच देने से बचना चाहिए।“

उपन्यास कहानियों को चुराने, छीनने और पूरा कर सकने का संघर्ष है। यह संघर्ष मुंबई शहर और फिल्म इंडस्ट्री की नब्ज़ को टटोलता है। लेखक यह भी कहता है कि “पूरी कहानी किसी के पास नहीं है। पूरी कहानी एक भ्रम है।“ जैसे सफलता एक भ्रम है। लोग आते जाते रहेंगे। कहानियाँ लिखी जाती रहेंगी। सबकी कहानियाँ फिंगरप्रिंट की तरह अलग भी होंगी। लेकिन बक़ौल लेखक “दुनिया हरामखोरों का अड्डा है। सिर्फ इसलिए बची हुई है कि हरामखोर लोग यहाँ और हरामखोरी कर सकें।

कहानियाँ सबके पास होती हैं। लेखक कहता भी है कि “सुख हो या दुख कभी शाश्वत नहीं होता। एक बार जीवन में दस्तक देने के बाद वह अपना निशान छोडकर ही जाता है। वह स्मृतियों के किसी कोने में दुबककर बैठ जाता है।“ हम सब स्मृतियों से बने हैं। इन्हीं स्मृतियों की तारतम्यता ही कहानी है। सब कहानियाँ कहते भी हैं। कहानियाँ झूठी भी होती हैं और सच्ची भी। सच बोलने का साहस सबमें नहीं होता। कहानी में सबकुछ है लेकिन इसकी सबसे बड़ी चीज़ है सच्चाई। खासतौर से फिल्म इंडस्ट्री में रहकर उसी इंडस्ट्री की सच्ची कहानी कहना तालाब में रहकर मगरमच्छ से दुश्मनी मोल लेना है। लेकिन रामकुमार सिंह ने यह साहस किया है। उन्हें बधाई।

(जगदीश सौरभ)

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