हास्य-विनोद
की कहानियाँ : रस्किन बॉन्ड
लेखन
में हास्य और विनोद की एक समृद्ध परंपरा रही है। लेखक और अभिनेता मानव कौल का एक
साक्षात्कार देख रहा था। प्रश्नकर्ता ने पूछा कि आपके लेखन में दार्शनिक गंभीरता
है लेकिन आपकी बातों में एक सहज हास्यबोध, एक ह्यूमर है। ऐसा क्यों ? जवाब मिला कि
शृष्टि का मूल स्वरूप ही बेहद हास्यास्पद है। आप कितना भी गंभीर हो लीजिये, अंततः आप
पाएंगे कि आप तीव्र गतिशील ब्रह्मांड में किसी जगह लटके या झूले हुये हैं। एक जगह
पहुँच कर किसी बात का कोई मतलब नहीं रह जाता। सबकुछ असंगत और हास्यास्पद है। मानव कौल
से इतर किसी को लगता है कि शृष्टि का मूल स्वरूप शोकात्मक है। ब्रह्मांड में
मनुष्य की स्थिति त्रासद और विडम्बनामयी है। मुझे लगता है कि यह त्रासदी और
विडम्बना भी अपने अनंतिम छोर पर पहुँच कर ‘ह्यूमर’ बन जाती है। अंग्रेज़ी में एक कहावत आपने
भी सुनी होगी कि ‘जोक इज़ अ सीरियस बिजनेस।‘ रस्किन बॉन्ड की छोटी-छोटी कहानियों का यह
संग्रह उनके लंबे जीवनानुभव और उसमें रचे-बसे हास्य का अनुपम पुलिंदा है। बॉन्ड को
स्वयं पर हंसने की कला आती है। खुद पर हंस लेने से ज़िंदगी कितनी आसान हो जाया करती
है। हल्के आदमी की परिभाषा बदलनी चाहिए। आदमी को हल्का होना चाहिए।
लेखन की
शुरुआत अपना मज़ाक उड़ाने से की जा सकती है। बहुत हद तक अंत भी। बॉन्ड के पास एक
लंबा अनुभव है लेकिन शुरुआती कहानियों में लगता है वह कोई कमाल करते हुये नहीं
दिखते। यह अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद की दिक्कतें हो सकती हैं। भाषा रुकावट पैदा करती
है, अन्यथा मुझे लगा कि बॉन्ड की कही गयी
शुरुआती मज़ेदार बातों में वह चुटीलापन नज़र क्यों नहीं आ रहा। एक बार मन ने कहा कि
हँस पड़ूँ, लेकिन फिर महसूस हुआ कि हँसना थोड़ा ज़्यादा हो जाएगा। अंततः यह समझ में आने लगा
कि कहानी का अनुवाद तो किया जा सकता है लेकिन व्यंग्य के इस गुदगुदेपन और नुकीलेपन
का नहीं।
कहीं-कहीं
बॉन्ड में खुशवंत सिंह की कुछ झलक मिलती है। गौरतलब है कि दोनों अंग्रेज़ी के लेखक हैं
और इन दोनों बूढ़ों की उम्र लेखकों के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकती है। हाँ, जब ये दोनों
बूढ़े व्यक्तियों जगहों इत्यादि के बारे में अपने विशद अनुभवों का ज़िक्र चुटीले
अंदाज़ में करते हैं तब कमाल अपने आप हो जाता है। एक कमाल यह भी है कि लोगों को
सत्तर साल की उम्र नसीब नहीं होती, और ये दोनों लगभग उससे ज़्यादा की लेखकीय उम्र बिता चुके
हैं। खुशवंत सिंह ने एक लंबा और समृद्ध जीवन जीकर इस दुनिया को अलविदा कहा। दोनों
ही कई मामलों में मुझे बेहद प्यारे लगते हैं। यह बड़ा ही कौतूहलपूर्ण है कि कोई
व्यक्ति दो-तीन पीढ़ियों और पूरी तरह से बदल चुके परिवेश में जीवित रहा है। साथ ही
उसके पास कहने के लिए ढेरों बातें हैं।
कुछ कहानियाँ
ऐसी हैं कि लगता है एक सफल पॉपुलर लेखक अगर सब्ज़ी का हिसाब भी लेख दे तो वह विक्रय योग्य हो जाता है। यह अच्छा भी
है, खराब भी। पिकासो अगर एक गिलास पेंट का घोल कैनवास पर गुस्से में दे मारे तो
वह भी लाखों डॉलर बना सकता है। लेखन ज़िंदगी की तरह ही है। कुछ समय बाद लेखक की कलम
में वह आत्मविश्वास आ जाता है की वह बोल पड़ती है कि ‘हमारे मुँह से
जो निकले वही सदाक़त है।‘ लेखक की कलम जब भी मुँह खोलती है, कुछ अच्छा ही
बोलती है। एक बेहतरीन जीवनानुभव वाला लेखक एक मज़ेदार किस्सागो होता है। अनमने, फुटकर और
असंगत ढंग से लिखा हुआ उसका सबकुछ उसके जीवन का आईना होता है। हर एक पैराग्राफ में
दर्शन का एक उत्स।
एक कहानी
में बॉन्ड स्वीट-पीज़ की तलाश करते हैं। उन्होने मसूरी के उतार चढ़ाव वाले रास्तों पर
फूलों और बीर बहूटियों को खूब गौर से देखने का भी बड़ा मोहक वर्णन किया है। प्रकृति
के प्रति विशेष लगाव लेखकीय व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्णपक्ष होता है। म्यूचुअल
फंड, बचतों, ब्याज दरों की अपेक्षा एक लेखक अपनी चिंताओं, जिज्ञासाओं और उत्सुकताओं का निवेश इस
बात में करता है कि कोई पेड़ इतना पुराना क्यों है, इस फूल का रंग इतना मोहक क्यों है, कौन सा मौसम
अधिक आकर्षित करता है। रुपया हमारे समय का सबसे बड़ा देवता हो सकता है लेकिन वह
हमारी मूल वृत्ति नहीं है। सभ्यता का चमकीला वस्त्र मात्र है। यह बहुत ऊपरी चीज़ है, मनुष्यों की ही
तरह। धरती की गीली सतह पर एक संयोग की तरह मनुष्य का जीवन वैसा ही है जैसे भीगी हुई
लकड़ी की सतह पर फंफूद उग आती है। प्रकृति तब भी थी जब मनुष्य नहीं था, जब जीवन नहीं
था। और तब भी रहेगी जब हम नहीं होंगे। प्रकृति के साथ तादात्म्य वास्तविक जीवन की, इसकी गतिकी की, इसके उन्नयन
और पतन की कहानी है, विस्तार है। लेखक स्वयं को सबसे अधिक प्रकृति के माध्यम से
ही व्यक्त करता है।
एक कहानी
प्यारी मैना ‘डिक्की’ की है। संसार के अन्य जीवधारियों के साथ आपका संबंध और व्यवहार, जीव जगत की
शृंखला में आपके महत्व को रेखांकित करता है। मनुष्य कई बार पशु पक्षियों के प्रेम
में, सभ्यता के कृत्रिम, सूखे आवरण को नकारता पाया गया है। यह दुर्लभ है लेकिन सच
भी। दरअसल मनुष्य के अहंकारी मन ने स्वयं को इस एकमात्र जीवित ग्रह का एकमात्र
मालिक समझ लिया है। इसके दुष्परिणाम भी हमें आए दिन देखने को मिलते ही हैं। ‘टुटू के कारनामे’ कहानी सवाल उठाती
है कि एक ही परिवार, प्रकृति, परिवेश के सदस्यों में मानवेत्तर जीवधारियों के प्रति
भिन्न किस्म का रवैया पाया जाता है। यह शोध का विषय है कि ऐसा क्यों होता होगा।
बॉन्ड
का लंबा जीवन विशिष्ट अनुभवों और विषय बहुलताओं से सुसज्जित है। कभी कभी लगता है
कि क्या अच्छा लिखने के लिए एक सुदीर्घ जीवन अनिवार्य शर्त है ? इससे हम अपनी
संगत में आए सैकड़ों व्यक्तियों, परिवेशों, परिस्थितियों के अनुभव का विश्लेषण कर पाने की क्षमता अनायास
ही हासिल कर लेते हैं। बॉन्ड ने अपनी कहानी ‘फव्वारे में मेंढक’ में विभिन्न
प्रकार के फोबिया का वर्णन किया है। मुझे आमतौर पर लगता है कि किसी भी प्रकार के
फोबिया से ग्रस्त व्यक्ति दुनिया कि नज़र में बदमिजाज दिखाई देता है। ऐसा बचपन की
किसी हीन ग्रंथि के सक्रिय रह जाने के कारण होता है, जिसका निपटारा उचित समय पर नहीं हो सका
था।
आगे की कुछ
कहानियाँ पैदल चलने, साइकिल की सवारी और टेढ़े मेढ़े रास्तों के बारे में हैं। पैदल चलना, खासकर लंबी
दूरियों तक, एक दार्शनिक गुंजाइश पैदा करता है। पैदल यात्रा की गाथाएँ सबके पास प्रचुर
मात्रा में होती हैं। पैदल चलना ही काफी नहीं, टेढ़ा मेढ़ा चलना, अनजाने रास्तों
पर चलना और अपने गंतव्य पर पहुँचने की कोई जल्दी न होना, ज़रूरी है। कहा
भी जाता है कि जल्दी का काम, काम कहलाने योग्य ही नहीं होता। एक शांत व्यक्ति ट्रैफ़िक के
रुके हुये अंतराल में भी अपने काम की चीज़ें ढूंढ लेता है। रेल यात्राओं का असली
मज़ा वही लेते हैं जिन्हें अपने गंतव्य पर पहुँचने की कोई जल्दी नहीं होती। और जीवन
भी एक सफर ही तो है और हड़बड़ी में जीने वाले इसका ज़रा भी मज़ा नहीं ले सकते।
बॉन्ड ने
अपनी कहानियों में यात्राओं का दिलचस्प वर्णन किया है। कार से यात्रा बेहोशी की
यात्रा होती है। साइकिल और पैदल यात्रा होश की यात्राएं हैं। वहाँ आपको जो दिखाई
देना चाहिए, वह दिखता है। साथी ही वह भी, जो नहीं है। यह फिल्म देखने और किताब पढ़ने के फर्क की तरह
है। किताब पढ़ना दो तरफा कार्यवाही है। इसमें आपकी कल्पनाओं का भी निवेश होता है।
बॉन्ड अपनी कहानियों में यत्र-तत्र दर्शन और इतिहास का बड़ा दिलचस्प समागम पैदा करते
हैं। ज़िंदगी और इतिहास की बारीक समझ अपने आप ही एक हास्य पैदा करती है। दर्शन की
सबसे ऊपरी परत भी हास्य निर्मित है। कल्पना हास्य का सबसे प्रबल हथियार है।
‘अंकल केन’ बॉन्ड की कई कहानियों के बड़े दिलचस्प किरदार
हैं। वह अपने जीवन में दुनियावी अर्थों में बेहद असफल व्यक्ति हैं। लेकिन बालक रस्किन
के मन पर अंकल केन की मज़ेदार बातों का बड़ा दार्शनिक असर होता है। यात्राएं खुले
दिमाग के व्यक्ति को अत्यधिक समृद्ध बनाती हैं। समुद्री यात्राएं तो और गहराई पैदा
करती होंगी। अब लंबी समुद्री यात्राओं का ज़माना नहीं रहा। लेकिन जिनमें कामना है, वे अवसर ढूंढ
लेते हैं। समुद्री यात्राओं पर बहुतों ने लिखा है। इस संदर्भ में हेमिंग्वे की ‘मैन एंड द सी’, शरतचंद्र की जीवनी
‘आवारा मसीहा’ और हरिवंश राय बच्चन की ‘बसेरे से दूर’ इत्यादि की समुद्री यात्राओं की कुछ झलकियाँ मेरे मस्तिष्क
पर सदा के लिए अंकित हो चुकी हैं।
ज़िंदगी
एक बुरी आदत बनकर न रह जाये, अगर जीवन में रोमांच न हो। रोमांच का मतलब सिर्फ ख़तरे मोल लेना
और जान जोख़िम में डालना नहीं होता। इसके लिए बस इतना ही करना है कि इसलिए हर वह
काम जो आप घर में करते हैं, बाहर भी यथावसर ज़रूर करें। यात्राएं इसके लिए सबसे सुनहरा
अवसर उपलब्ध कराती हैं। जो मुश्किलें एक वक्त में तकलीफ देती हैं, भय और क्रोध
पैदा करती हैं, बाद में वही मोहक स्मृतियाँ बन जाती हैं। रोमांच अनिश्चितता में होता है।
अनिश्चितता साहस में फलीभूत होती है। मलयज कहते हैं ‘निरर्थकता अर्थ
का वह कुँवारापन है जिसे भोगा नहीं गया।‘ असगर गोंडवी का शेर है कि ‘चला जाता हूँ
हँसता खेलता मौजे हवादिस में, अगर असानियां हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाये।‘ बॉन्ड की एक कहानी
है ‘बैंक मैनेजर के साथ सुहाना सफ़र।‘ बैंक आमतौर पर वह जगह होती है जहां कोई रोमांच नहीं होता, अगर डकैती नहीं
पड़ी हो। बैंक मैनेजर के प्रस्ताव पर वनभोज के लिए निकल जाने की यह मज़ेदार कहानी है।
कहानियाँ
गढ़ने में एक उत्तेजक कल्पनाशीलता की जरूरत होती है। मैंने घर के बच्चों को एक लंबी
कहानी, कई किश्तों में, कई सालों तक सुनाई है। हर बार जब गाँव जाता, मांग के
अनुसार, तुरंत एक किश्त तैयार हो जाती। कहानी तब तक सुनाता, जब तक बच्चे
सो न जाते। कहानी का हीरो मैं होता, जो हर पिछले भयावह दृश्य से निकल कर अगले खतरनाक दृश्य में
उलझ जाता। बच्चों को यह अच्छा लगता था। कहानी तब तक जारी रही, जब तक बच्चे बड़ों
में तब्दील नहीं हो गए और उनको यह नहीं पता चला कि कई सालों से उनकी मासूमियत का बेजा
फ़ायदा उठाया जा रहा है।
इस संग्रह
में दो-तीन छोटी कहानियाँ रोमांस की भी हैं। प्रेम और रोमांस की सारी कहानियाँ
अद्भुत होती हैं। फिर चाहे वह सुखांत हो कि दुखांत। जीवन अपने आप में एक ट्रेजेडी
ही तो है। एक क्षण के लिए किया गया निष्कलुष प्रेम जीवन भर की पूंजी बन जाता है।
ज़िंदगी कितनी भी आगे बढ़ जाये, प्रेमिल क्षण वहीं ठहरे होते हैं। वे वापस बुलाते हैं।
पूरा जीवन प्रेम के एक गहन क्षण की अनुभूति में बिताया जा सकता है। गुजरे हुये
जीवन में जो सुखद स्मृतियाँ शेष रह जाती
हैं, वही तो प्रेम होता है। बॉन्ड शादीशुदा नहीं थे और यह उनके लिए बड़ी संतोषजनक
बात है। जीवन का एक सच यह भी है कि जीवन के सारे फैसले, जो कितने भी
सोच समझ कर लिए गए हों, एक दिन गलत साबित हो जाने हैं। आदमी अपने फैसलों को सही
इसलिए ठहराता जाता है कि उसने अपने जीवन के बड़े समय में इस बात में तथ्यों और
तर्कों का निवेश किया है। शादी, नौकरी, प्रॉपर्टी हो या फिर जीवन।
लेखक का
जीवनदर्शन माचिस की तीलियों की तरह होता है, जिससे वह बहुत बड़ी आग पैदा कर सकता है।
लेखक जैसे-जैसे उम्रदराज़ होता है, पुरानी स्मृतियों को सजीव करने के बहुत सारे टूल्स उसे
मिलते जाते हैं। एक मामूली अनुभूति से वह महाकाव्य रचने की क्षमता हासिल कर लेता
है। कल्पनाएं और दृश्य विधान उसके सबसे बड़े हथियार होते हैं।, जिनसे वह गहरे
अवचेतन में सोई हुई सामान्य अनुभूतियों को भी मूर्तिमान कर सकता है। जैसे वह आज ही
घटित हुई हैं। जैसे अभी घटित हो रही हैं। रस्किन बॉन्ड इस हुनर में माहिर हैं।
जगदीश सौरभ
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