सूनी रात के हासिल


    मैं बेवजह रातों को जगता हूँ

    रातों से खोदता हूँ जीवन की परतें

    सोचता हूँ सो जाऊं,

    फिर सोचता हूँ एक दिन सोना ही तो हैहमेशा के लिए

    सोने से जागना अच्छा

 

    फिर मुकम्मल नींद गवां कर भी क्या पाता हूँ

    थोड़ी सी देह की अकडनथोड़ी सी पथराई आँखें,

    चाय के दो-चार खाली कप और चंद सिगरेटों के जले टुकड़े

    यही मेरी सूनी रात के हासिल हैं

 

    मुझे पता है कि

    इतनी आसानी से नहीं खुलतीं जीवन की गिरहें

    इतनी आसानी से नहीं सुलझती उलझनें

    फिर भी कोशिश करने में क्या हर्ज है

    न जाने कौन सी रात हो कुदाल के आखिरी प्रहार की तरह

 

    सुना है मैंने कि

    पानी की हल्की धार भी पत्थर को काटतीतराशती रहती है

    तो क्या मेरी अधजगी रातें इतना भी नहीं कर सकतीं

    कि मेरे लिए एक अच्छी सी सुबह तराश दें

 

    सोने की कोशिश में मेरा जागने का संकल्प

    और भी घनीभूत होता जाता है

    मैं ढेर सारा जागना चाहता हूँ,

    ताकि एक दिन चैन से सो जाऊं

 

    हमेशा-हमेशा के लिए...

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