आनी दुनियाँ, जानी दुनियाँ
कितनी है यह फ़ानी दुनिया
कभी तो अपनी लगती है फिर
लगती है बेगानी दुनियाँ
बाहर कितना बड़ा शहर, और
भीतर से वीरानी दुनियाँ
साँच कहो तो आँच लगे, बस
झूठ कहे पतियानी दुनियाँ
हम वैसे के वैसे रह गए
दिन-दिन हुई सयानी दुनियाँ
रिश्तों के अम्बार लगें जब
अम्मा, दादी, नानी
दुनियाँ
सबकुछ कितना टूट गया है
गज़ब की खींचातानी दुनियाँ
बचपन में लगती थी हमको
दूध भात सी सानी दुनियाँ
दिल का दरिया सूख गया अब
बचा आँख का पानी दुनियाँ
जीवन जीने के चक्कर में
हुई तेल की घानी दुनियाँ
व्यंग्य, चुटकुला, नाटक-प्रहसन
कविता ग़ज़ल कहानी दुनियाँ
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