कुछ टूटता रहता है हमेशा मेरे अंदर


    कुछ टूटता रहता है हमेशा मेरे अंदर

    उठने लगा है दर्द ज़रा सा मेरे अंदर

 

    पल-पल मैं समंदर में अपने डूब रहा हूँ

    बैठा है कोई सदियों से प्यासा मेरे अंदर

 

    मेरा वजूद दर्द से घुट-घुट के मर गया

    करते रहे हकीम तमाशा मेरे अंदर

 

    मुद्दत हुए मैखाने का रस्ता नहीं देखा

    फिर होश में भी क्यूँ है नशा-सा मेरे अंदर

 

    मुझको नहीं मालूम है मैं हूँ या नहीं हूँ

    तुमने भी मुझे कितना तलाशा मेरे अंदर

 

    ये फन मुझे कुछ और भी करने नहीं देता

    अल्लाह ने क्यों इसको तराशा मेरे अंदर

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