अन्तर्मन यूँ टूट रहा है बाबुल न इ हर छूट रहा है बसी बसाई सुन्दर नगरी जैसे कोई लूट रहा है बाहर-बाहर सबकुछ सच है अन्दर-अन्दर झूठ रहा है यादों का नश्तर दिल चीरे नासूरों सा फूट रहा है
एक सुन्दर अफ़साना माँ चिड़िया , बादल , तितली , बारिश एक सुन्दर अफ़साना माँ नींद में बिस्तर , प्यास में पानी , भूख में दाना-दाना माँ सपनों की बुनियाद के तले , घर में गड़ा खज़ाना माँ खिड़की , आँगन , छत , दीवारें , छप्पर , ताना-बाना माँ मैं जब नन्हा था तो कैसा दिखता था , क्या करता था चलनी , सूप किनारे रख आ बैठ ज़रा बतिया ना माँ कान पकड़ स्कूल ले गयी सर्दी , बारिश या गर्मी तुम क्यों इतनी निष्ठुर थी तब अब मैंने ये जाना माँ बाबूजी की चिट्ठी पढ़कर तुम इतना …
Writer, Assistant Professor, Hindi Department, Central University of Jharkhand, Ranchi
Let's Get Connected:- Twitter | Facebook | Google Plus | Linkedin | Pinterest
Social Plugin